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Sambhal से Assam तक: हिंदू आबादी में भारी गिरावट, क्या है Demography बदलाव की असली हकीकत?

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उत्तर प्रदेश के संभल और असम की बदलती जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) ने देश में हलचल मचा दी है। संभल में हुई हिंसा की जांच के लिए बनी कमेटी की 450 पन्नों की रिपोर्ट ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। आजादी के समय संभल नगर पालिका क्षेत्र में हिंदू आबादी 45% थी, जो अब घटकर मात्र 15-20% रह गई है। वहीं मुस्लिम आबादी 55% से बढ़कर 80-85% हो गई है। रिपोर्ट में इसे "साजिश" और "हिंदू मंदिरों पर निशाना" बताकर "एथनिक क्लीनिंग" जैसा असर होने का दावा किया गया है। लेकिन ये सिर्फ संभल की कहानी नहीं है असम में हालात और भी गंभीर हैं।

असम में भी हालात चिंताजनक!
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने दावा किया है कि अगर यही रफ्तार रही, तो 2041 तक असम में हिंदू और मुस्लिम आबादी बराबर हो जाएगी। 2011 की जनगणना के मुताबिक असम की कुल आबादी 3.12 करोड़ थी । जिसमें 1.92 करोड़ (61.47%) हिंदू और 1.07 करोड़ (34.22%) मुस्लिम थे। उस समय नौ जिले मुस्लिम बहुल थे, जो 2001 में छह थे। अब ये संख्या बढ़कर 11 हो गई है। इन जिलों में धुबरी (79.67% मुस्लिम), बारपेटा (70.74%), दरांग (64.34%), हैलाकांडी (60.31%), गोलपारा (57.52%), करीमगंज (56.36%), नागांव (55.36%), मोरीगांव (52.56%), बोंगाईगांव (50.22%), साउथ सलमारा-मानकाचार और होजाई शामिल हैं।

क्या है इस बदलाव का मुख्य कारण? 
इस बदलाव के पीछे मुख्य कारणों में बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ, उच्च जन्म दर और प्रवासन को माना जा रहा है। सीएम शर्मा का कहना है कि बांग्लादेशी घुसपैठ ने असम की जनसांख्यिकी को सबसे ज्यादा प्रभावित किया। विशेषज्ञों का मानना है कि मुस्लिम समुदाय में जन्म दर (2.3) हिंदुओं (1.9) से अधिक है, जो आबादी के अनुपात को बदल रहा है। इसके अलावा भूमि अतिक्रमण भी एक बड़ा मुद्दा है। शर्मा ने बताया कि राज्य में 29 लाख बीघा जमीन पर अतिक्रमण है जिसमें ज्यादातर "अवैध बांग्लादेशी" शामिल हैं।

बार-बार दंगे हैं वजह !
संभल और असम की स्थिति में समानता है। दोनों जगह हिंदू आबादी में कमी और मुस्लिम आबादी में वृद्धि देखी गई है। संभल में बार-बार दंगों (1947 से 2019 तक 15 दंगे) को डेमोग्राफी बदलाव का कारण बताया गया। वहीं असम में घुसपैठ और जन्म दर का अंतर मुख्य वजह है। ये मुद्दा अब राजनीतिक बहस का केंद्र बन चुका है। सवाल ये है कि क्या ये बदलाव स्वाभाविक है या सुनियोजित? आने वाली जनगणना और सरकारी कदम इस सवाल का जवाब दे सकते हैं।

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