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Akbar की Gujarat जीत का प्रतीक Buland Darwaza, जो 400 साल बाद भी बुलंद है!

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आगरा सिर्फ ताजमहल के लिए नहीं बल्कि फतेहपुर सीकरी के लिए भी मशहूर है। कभी मुगल साम्राज्य की राजधानी रहा ये शहर आज यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। यहां का बुलंद दरवाजा हर पर्यटक को अपनी भव्यता से मोह लेता है। 2 सितंबर 1573 को मुगल बादशाह अकबर ने गुजरात पर फतह हासिल की थी। इस जीत की खुशी में उन्होंने बुलंद दरवाजा बनवाया जो आज भी उनकी शान और दूरदर्शिता की गवाही देता है।

गुजरात विजय और बुलंद दरवाजे की कहानी 
1573 में अकबर ने गुजरात को अपने साम्राज्य में मिला लिया। इस जीत को अमर करने के लिए 1575 में बुलंद दरवाजे का निर्माण शुरू हुआ जो 1587 में पूरा हुआ। लाल बलुआ पत्थर से बना ये दरवाजा हिंदू और फारसी वास्तुकला का अनोखा मेल है। इसके स्तंभों पर कुरान की आयतें और बाइबिल की पंक्तियां उकेरी गई हैं जो अकबर की धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाती हैं। ये दरवाजा न सिर्फ एक वास्तुशिल्प चमत्कार है बल्कि अकबर के खुले विचारों का प्रतीक भी है।

बुलंद दरवाजे की भव्यता और खासियत 
53.63 मीटर ऊंचा और 35 मीटर चौड़ा बुलंद दरवाजा दुनिया के सबसे ऊंचे गेट्स में से एक है। 42 सीढ़ियां चढ़कर इसकी चोटी तक पहुंचा जा सकता है जहां से फतेहपुर सीकरी और आसपास का शानदार नजारा दिखता है। ये दरवाजा जामा मस्जिद के आंगन से जुड़ा है। 400 साल बाद भी इसकी मजबूती और सुंदरता पर्यटकों को हैरान करती है। हिंदू-इस्लामी कला का संगम इसे इतिहास और संस्कृति का अनमोल खजाना बनाता है।

कैसे पहुंचे बुलंद दरवाजा?
आगरा से फतेहपुर सीकरी की दूरी करीब 47 किलोमीटर है। आप कैब, ऑटो या बस से आसानी से यहां पहुंच सकते हैं। आगरा रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से नियमित बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं। फतेहपुर सीकरी में बुलंद दरवाजा देखने का सबसे अच्छा समय सुबह या शाम है जब मौसम सुहाना होता है।

मुगल साम्राज्य का चमकता सितारा अकबर  
15 अक्टूबर 1542 को उमरकोट (अब पाकिस्तान के सिंध में) में जन्मे अकबर मुगल बादशाहों में सबसे महान थे। 1556 से 1605 तक उन्होंने शासन किया और भारतीय उपमहाद्वीप में मुगल साम्राज्य का विस्तार किया। अकबर ने हिंदुओं और मुस्लिमों को एकजुट करने के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने जजिया कर खत्म किया और राजपूतों से गठजोड़ किया। उनके प्रशासनिक सुधारों ने साम्राज्य को मजबूत किया। कर व्यवस्था को दुरुस्त करने और केंद्रीय शासन को बेहतर बनाने में उनकी नीतियां आज भी मिसाल हैं।

इतिहास का जीवंत गवाह  
बुलंद दरवाजा सिर्फ एक स्मारक नहीं बल्कि अकबर के विजन और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। ये हर साल लाखों पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। अगर आप इतिहास और वास्तुकला के शौकीन हैं तो बुलंद दरवाजा जरूर देखें। ये न सिर्फ आंखों को सुकून देता है बल्कि अकबर के गौरवशाली दौर की कहानी भी सुनाता है।

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