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यूपी पंचायत चुनाव: क्या बीजेपी-आरएलडी गठबंधन पर मंडराएगा टूटने का खतरा?

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उत्तर प्रदेश में 2026 के पंचायत चुनाव को विधानसभा चुनाव 2027 का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इस बीच, राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के प्रमुख जयंत चौधरी की आक्रामक रणनीति और स्वतंत्र रुख ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए टेंशन बढ़ा दी है। मेरठ में हाल ही में हुई RLD की चुनाव समिति की बैठक ने संकेत दिए हैं कि पार्टी इस बार पंचायत चुनाव में अकेले दम दिखाने को तैयार है। सवाल यह है कि क्या यह बीजेपी-आरएलडी गठबंधन पर संकट ला सकता है?

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और आरएलडी ने मिलकर पश्चिमी यूपी में शानदार प्रदर्शन किया था। आरएलडी को बागपत और बिजनौर की दो लोकसभा सीटें मिलीं, और जयंत चौधरी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गई। यह गठबंधन जाट समुदाय के वोटों को एकजुट करने में सफल रहा, जिसने बीजेपी को पश्चिमी यूपी में मजबूती दी। लेकिन पंचायत चुनाव में आरएलडी का अकेले उतरने का फैसला गठबंधन की एकता पर सवाल उठा रहा है। मेरठ की बैठक में आरएलडी ने जिला पंचायत और ग्राम पंचायत स्तर पर स्वतंत्र उम्मीदवार उतारने की योजना बनाई, जिससे बीजेपी के स्थानीय नेता चिंतित हैं।

RLD ने गांव-गांव तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करने का प्लान बनाया है। पार्टी ने 2 अक्टूबर, 2025 से एकता यात्रा शुरू करने का ऐलान किया है, जो अलीगढ़ से शुरू होकर पूरे यूपी में जाएगी। इस यात्रा का मकसद जाट, किसान और अन्य समुदायों को एकजुट करना है। आरएलडी के एक नेता ने कहा, “पंचायत चुनाव में गांव के लोग फैसला करते हैं। हमारी रणनीति स्थानीय मुद्दों और लोगों की भावनाओं पर केंद्रित होगी।” यह स्वतंत्र रुख बीजेपी के लिए चुनौती बन सकता है, क्योंकि पश्चिमी यूपी में जाट वोटों पर आरएलडी की मजबूत पकड़ है।

बीजेपी भी पंचायत चुनाव की तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़ रही। मेरठ के कंकरखेड़ा में हाल ही में 14 जिलों के नेताओं की बैठक में प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कार्यकर्ताओं को हर बूथ पर जीत सुनिश्चित करने का मंत्र दिया। बीजेपी का फोकस जिला पंचायत सदस्यों और अध्यक्षों के चुनाव पर है, क्योंकि ये गैर-दलीय आधार पर नहीं होते। लेकिन ग्राम प्रधान और क्षेत्र पंचायत स्तर पर बीजेपी हस्तक्षेप से बच रही है, जो आरएलडी को अपनी ताकत दिखाने का मौका दे सकता है।

पिछले पंचायत चुनाव (2021) में बीजेपी ने 768 जिला पंचायत सीटें जीती थीं, जबकि आरएलडी को 69 सीटें मिली थीं। इस बार आरएलडी का लक्ष्य अपनी सीटें बढ़ाने का है, और जयंत चौधरी की सक्रियता से लगता है कि वह बीजेपी को कड़ी टक्कर देने के मूड में हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आरएलडी का स्वतंत्र रुख गठबंधन में दरार डाल सकता है। अगर आरएलडी और बीजेपी के कार्यकर्ता स्थानीय स्तर पर एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होते हैं, तो यह गठबंधन की एकता को कमजोर कर सकता है।

हालांकि, बीजेपी के कुछ नेताओं का कहना है कि पंचायत चुनाव में गठबंधन की कोई औपचारिक बाध्यता नहीं है, क्योंकि यह गैर-दलीय आधार पर लड़ा जाता है। लेकिन पश्चिमी यूपी में जाट और किसान वोटों का बंटवारा बीजेपी के लिए नुकसानदायक हो सकता है। अगर आरएलडी अपनी ताकत बढ़ाने में सफल रही, तो यह 2027 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।

क्या आरएलडी की यह रणनीति गठबंधन को तोड़ेगी, या यह सिर्फ पंचायत चुनाव तक सीमित रहेगी? यह आने वाला समय बताएगा। फिलहाल, आरएलडी की जोरदार तैयारियां यूपी की सियासत में हलचल मचा रही हैं।

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