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Ghazipur में दिव्यांग BJP कार्यकर्ता की मौत पर भाई का फूटा दर्द, बोला- 'सरकार की इंसाफ की बात अब भरोसे लायक नहीं'

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गाज़ीपुर में दिव्यांग भाजपा कार्यकर्ता सियाराम उपाध्याय की मौत के बाद अब उनका परिवार गहरे सदमे और नाराज़गी में है। सियाराम के बड़े भाई शशिकांत उपाध्याय का दर्द अब खुलकर सामने आ गया है। उन्होंने कहा कि अब किसी से हमदर्दी नहीं चाहिए, न सरकार पर भरोसा है न प्रशासन पर। फेसबुक पर वायरल एक वीडियो में शशिकांत ने कहा कि "मुझे पता है कि अब इस देश में न्याय नहीं मिलेगा। सरकार कितना न्याय दिलाती है, अब समझ में आ गया है। दस लाख जो प्रशासन ने दिया है, वो भी वापस करने को तैयार हूं।"

FIR किसने लिखी, पता भी नहीं: सिस्टम पर उठे सवाल
शशिकांत ने साफ कहा कि उन्हें अभी तक FIR की कॉपी तक नहीं मिली। उन्होंने कहा, “न मैं जानता हूं कि किसने FIR कराई, न ये कि उसमें क्या लिखा है। सारी बातों में मिलीभगत है। लोग बस आ रहे हैं मामले को शांत कराने, ताकि बात आगे न बढ़े।" उन्होंने ये भी कहा कि "जब कहा जा रहा है कि मेरे भाई की मौत हार्ट अटैक से हुई है तो फिर ये दस लाख का पैसा किस बात का? क्या हम इंसाफ की कीमत लगा रहे हैं?"

"मुझे नहीं चाहिए किसी की मदद, न ही हमदर्दी"
शशिकांत ने कहा कि उनकी जो स्थिति है उसमें वो अपने माता-पिता के साथ ठीक हैं। अब किसी नेता या अधिकारी से उम्मीद नहीं है। उन्होंने दुख जताया कि लोग इंसाफ की बात कम और रफा-दफा की कोशिश ज्यादा कर रहे हैं। "हमारी संवेदनाएं बार-बार खरीदी जा रही हैं, ये सब दिखावा है। अब हम अकेले ही ठीक हैं।"

सरकार और प्रशासन के लिए एक बड़ा सवाल
भाजपा कार्यकर्ता की मौत के बाद भी परिवार को न तो पारदर्शिता मिली, न न्याय की कोई स्पष्ट प्रक्रिया। शशिकांत की नाराज़गी ये दिखा रही है कि सिर्फ आर्थिक मदद से इंसाफ नहीं मिलता। इस घटना ने न सिर्फ प्रशासन की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि पार्टी के अंदरूनी हालात को भी उजागर कर दिया है।

क्या वाकई हार्ट अटैक था या कुछ और?
सवाल अब ये भी उठ रहा है कि दिव्यांग भाजपा कार्यकर्ता की मौत वाकई स्वाभाविक थी या फिर कहीं ना कहीं प्रशासनिक ज्यादती  इसका कारण बनी? जब तक इस मामले की निष्पक्ष जांच नहीं होती, परिवार की नाराज़गी खत्म नहीं होने वाली। गाज़ीपुर की ये घटना अब सिर्फ एक मौत का मामला नहीं रह गया, ये सिस्टम की संवेदनहीनता और जनता के टूटते विश्वास की मिसाल बन चुकी है।

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