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ग्रेटर नोएडा में दर्दनाक हादसा, बेटे की बीमारी से तंग आकर मां ने 13वीं मंजिल से लगाई छलांग

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ग्रेटर नोएडा वेस्ट की ऐस सिटी सोसाइटी के ई टावर में एक दिल दहला देने वाली घटना हो गई। 13वीं मंजिल से मां और बेटे शाफ्ट की तरफ से कूद पड़े। तेज आवाज सुनकर सोसाइटी वालों को लगा जैसे सिलिंडर फट गया हो। मां साक्षी चावला 37 साल की थीं और बेटा दक्ष 11 साल का था। पिता दर्पण चावला सीए हैं। दो दिन पहले ही वो पंजाब से बेटे को डॉक्टर को दिखाकर लौटे थे। दक्ष को बचपन से ऑटिज्म था। उसका शारीरिक विकास तो ठीक था लेकिन मानसिक रूप से कमजोर था। स्कूल नहीं जाता था और दवाओं पर ही निर्भर रहता था।

बेटे की बीमारी ने तोड़ा मां का हौसला
साक्षी पहले आईटी कंपनी में जॉब करती थीं लेकिन बेटे के जन्म के बाद सब छोड़ दिया। वो दिन रात दक्ष की देखभाल में लगी रहतीं। पड़ोसी बताते हैं कि परिवार सोसाइटी के हर इवेंट में बच्चे के साथ आता था। एओए की एक्टिविटी में साक्षी दक्ष को लेकर जाती ताकि वो दूसरे बच्चों से मिले। पिता शाम को नीचे टहलाने ले जाते। परिवार 2017 से यहां रह रहा था। शांत स्वभाव का था। पति-पत्नी में कभी झगड़ा नहीं दिखा। साक्षी अक्सर कहतीं कि डॉक्टर बोले हैं बच्चा जल्द ठीक हो जाएगा। पूजा-पाठ में भी हिस्सा लेते थे। लेकिन बीमारी में सुधार न होने से तनाव बढ़ता गया।

कई डॉक्टर्स को दिखाया, मन्नत भी मांगी
परिवार ने दक्ष को कई डॉक्टरों को दिखाया। पंजाब तक गए और गुरुद्वारों में अरदास भी कराई लेकिन हालत न सुधरी। बच्चा मां-बाप के बिना घर से बाहर नहीं निकलता था। साक्षी कई बार बोलीं कि जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है। पड़ोसी कहते हैं कि बेटे की वजह से वो अवसाद में डूब गई थीं।

सुसाइड नोट में पति से मांगी माफी
पुलिस को फ्लैट में डायरी मिली। साक्षी ने पति दर्पण के नाम सुसाइड नोट में लिखा 'हम दुनिया छोड़ रहे हैं सॉरी'। हम तुम्हें अब और परेशान नहीं करना चाहते। हमारी वजह से तुम्हारी जिंदगी खराब न हो। हमारी मौत का जिम्मेदार कोई नहीं। हमें माफ करना। फिलहाल पुलिस हैंडराइटिंग और सबूतों की जांच कर रही है। मृतका के परिजनों और सोसाइटी वालों से पूछताछ चल रही है। अभी कोई शिकायत नहीं आई है। फिलहाल पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार है।

मनोवैज्ञानिक ने बताया बर्नआउट सिंड्रोम का खतरा
जीबीयू के मनोवैज्ञानिक डॉ आनंद प्रताप सिंह कहते हैं कि ऑटिज्म बच्चों के माता-पिता पर बर्नआउट सिंड्रोम हावी हो जाता है। देखभाल से थकान होती है, आर्थिक और सामाजिक दबाव बढ़ता है। जीवन बेकार लगने लगता है।

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