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बांके बिहारी मंदिर का सालों बाद खोला गया खजाना, जानिए क्या क्या मिला

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वृंदावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर का लंबे समय से बंद तोषखाना (कोष कक्ष) शनिवार को धनतेरस के अवसर पर 54 सालों के बाद खोला गया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की देखरेख में कोषागार को दोबारा खोला गया। मथुरा के सर्किल ऑफिसर संदीप सिंह के अनुसार पूरा अभियान कड़ी सुरक्षा और वीडियोग्राफी के बीच चलाया गया। केवल अदालत के अधिकृत समिति के सदस्यों को ही प्रवेश की अनुमति थी। लंबे समय से सीलबंद चैंबरों से संभावित खतरों से निपटने के लिए, अग्निशमन और वन विभाग की टीमों को तैनात किया गया था। किसी भी आग को रोकने के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद करने के लिए डिज़ाइन किया गया एक विशेष बैकपैक अग्निशामक यंत्र भी तैयार रखा गया था।

प्रक्रिया की हुई वीडियोग्राफी
संदीप सिंह ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मंदिर के कोषागार के दरवाजे दोबारा खोले जा रहे हैं। जिसको लेकर कोर्ट की समिति के सदस्यों ने पूरी व्यवस्था की है। पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जाएगी और अग्निशमन और वन विभाग की टीमों की मौजूदगी में सभी सुरक्षा उपाय किए गए हैं।"

पारंपरिक अनुष्ठान किया गया
कोषागार वाले कमरे में प्रवेश करने से पहले अधिकारियों ने प्रवेश द्वार पर दीप जलाकर पारंपरिक अनुष्ठान किया। इसके बाद समिति जिसमें सिविल जज, सिटी मजिस्ट्रेट, एसपी सिटी, सीओ वृंदावन, सीओ सदर और चार गोस्वामी शामिल थे उन्होंने सुरक्षा मास्क पहनकर कमरे में प्रवेश किया।

मंदिर के संरक्षक घनश्याम गोस्वामी ने पुष्टि की है कि न्यायिक और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ चार मनोनीत गोस्वामियों को भी कोषागार में प्रवेश की अनुमति दी गई है। उन्होंने कहा, "धनतेरस पर 54 साल बाद बांके बिहारी का कोषागार खोला गया है। समिति के सदस्यों को कोषागार में प्रवेश की अनुमति है। न्यायिक और प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा चार मनोनीत गोस्वामियों को भी अनुमति दी गई है।"

अब तक क्या क्या मिला
शुरुआती तलाशी के दौरान टीम को कक्ष के अंदर एक संदूक और एक कलश मिला। इस खजाने में सोने-चांदी के आभूषण, हीरे-जवाहरात और कई बहुमूल्य कलाकृतियाँ होने की उम्मीद है। बता दें कि बांके बिहारी मंदिर का कोषागार गर्भगृह में भगवान के सिंहासन के ठीक नीचे बना हुआ है।

1971 से बंद है कमरा
आखिरी बार 1971 में इसे तत्कालीन मंदिर समिति अध्यक्ष की देखरेख में खोला गया था। ऐसा माना जाता है कि इस कक्ष में सोने चांदी के आभूषण, स्वर्ण कलश और लगभग 160 साल पुराने चांदी के सिक्के रखे हैं। विशेष समिति से अपेक्षा की गई है कि वो खजाने के दोबारा खुलने के बाद सूची की जांच करेगी और आभूषणों के साथ-साथ बाकी कलाकृतियों का दस्तावेजीकरण करेगी।

किसने कराया था निर्माण?
ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार इस खजाने का निर्माण 1864 में वैष्णव परंपराओं के अनुसार किया गया था। इस खजाने में भरतपुर, करौली और ग्वालियर राज्यों से प्राप्त दान राशियां संग्रहित हैं। इस खजाने में मुहरबंद दस्तावेज़, उपहार, प्रशंसा पत्र और दान में प्राप्त भवनों और खेतों के भूमि-पत्र भी रखे हैं।

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