जयपुर का अनोखा मंदिर जहां रामजी को दामाद मानकर होती है पूजा, सीता माता के दो स्वरूपों का जानिए रहस्य!
- Shubhangi Pandey
- 11 Sep 2025 04:41:05 PM
जयपुर सिर्फ गुलाबी शहर ही नहीं बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक खजाने का ठिकाना है। चारदीवारी बाजार में छोटी चौपड़ पर बने श्री सीताराम मंदिर की बात ही निराली है। 1730 में नगर सेठ लूणकरण दास नाटाणी ने इसे बनवाया था। मंदिर में माता सीता के दो स्वरूप हैं। एक काले पत्थर की अचल मूर्ति दूसरी अष्टधातु की चलायमान मूर्ति। भगवान राम की भव्य मूर्ति भी विराजमान है जो सूरज की पहली किरण से चमकती है। जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने एक मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की थी। पुजारी बताते हैं कि सीता माता ममता की मूरत हैं जैसे मां बच्चों को बुलाती है। इसीलिए भक्त उनके चरणों के दर्शन को उमड़ते हैं। ये परंपरा 297 सालों से चल रही है।
रामजी को क्यों मानते हैं दामाद?
मंदिर की सबसे खास बात है यहां होने वाली भगवान राम की पूजा। यहां उन्हें दामाद के रूप में पूजा जाता है। पुजारी बताते हैं कि उनके पूर्वजों ने सीताराम समाज बनाया और माता सीता का कन्यादान किया। खुद को जनकवासी मानकर सीता को बहन और राम को जीजा माना है। जब जनकपुर में भगवान राम की बारात आई थी तो वो 90 दिन रुकी थी। इसलिए मंदिर में रामजी का सत्कार दामाद की तरह होता है। जयपुर के पांच परिवार अयोध्या से जुड़े हैं और ये परंपरा निभाते हैं। भक्तों का कहना है कि ऐसा कहीं और नहीं देखा।
जानकी नवमी पर लगता है मेला
हर साल जानकी नवमी पर मंदिर में गजब का उत्सव होता है। हजारों भक्त सीता-राम के दर्शन को आते हैं। भक्ति का माहौल देखते बनता है। मंदिर 4200 वर्ग गज में फैला है और भारतीय वास्तुकला का शानदार नमूना है। विशाल गुम्बद और बरामदे इसकी खूबसूरती बढ़ाते हैं। निर्माण में 300 सोने की मोहरें लगी थीं जिनकी चमक आज भी बरकरार है। बाहरी नक्काशी इतनी बारीक है कि आंखें ठहर जाएं। मंदिर ऐसा बनाया गया कि सूरज की पहली किरण रामजी पर पड़ती है। जयपुर के चारदीवारी बाजार के मंदिर वास्तुशास्त्र पर बने हैं। श्री सीताराम मंदिर इनमें अलग है। इसकी बनावट और परंपरा इसे यूनिक बनाती है। भक्तों का मानना है कि यहां दर्शन से मन को सुकून मिलता है। अगर आप जयपुर आएं तो इस मंदिर को जरूर देखें।
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