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Karwa Chauth पर सरगी की है खास परंपरा, कहां से हुई शुरुआत और क्या हैं इसे खाने के नियम

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करवाचौथ का व्रत हर साल कार्तिक महीने की चतुर्थी को मनाया जाता है। ये व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए करती हैं। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले सरगी खाकर पूरे दिन निर्जल और निराहार व्रत रखती हैं और चांद देखकर व्रत तोड़ती हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि सरगी की परंपरा की शुरुआत कहां से हुई और इसे खाने के क्या नियम होते हैं।

सरगी की परंपरा कैसे शुरू हुई?
सरगी की परंपरा पंजाबी संस्कृति से निकली मानी जाती है। पहले इसे सिर्फ पंजाब और उसके आसपास के क्षेत्रों में मनाया जाता था, लेकिन अब ये परंपरा पूरे देश में प्रचलित हो चुकी है। सरगी आमतौर पर सास द्वारा अपनी बहू को दी जाती है। इसमें फल, मिठाई, सूखे मेवे, मठरी, सेंवईं, हलवा और कुछ हल्का-फुल्का भोजन शामिल होता है। मान्यता है कि सरगी खाने से व्रती को दिनभर ऊर्जा मिलती है और व्रत आसानी से पूरा होता है। साथ ही, इसे परिवार के प्रेम और आशीर्वाद से जोड़कर देखा जाता है।

सरगी कब खाई जाती है?
सरगी सुबह सूर्योदय से पहले यानी ब्रह्म मुहूर्त में खाई जाती है। इसे खाने के बाद व्रत शुरू होता है। इसके बाद महिलाएं पूरे दिन बिना खाना-पानी के रहकर व्रत करती हैं। इस दौरान पूजा-पाठ किया जाता है और शाम को चांद निकलने के बाद व्रत खोला जाता है।

सरगी में क्या-क्या होता है?
हर घर में सरगी का तरीका थोड़ा अलग हो सकता है, लेकिन आमतौर पर इसमें ये चीजें शामिल होती हैं:

सूखे मेवे: जैसे बादाम, काजू, किशमिश, पिस्ता
मिठाई: खासकर लड्डू या बर्फी
फल: मौसमी फल जैसे सेब, केला, अंगूर
मठरी और सेंवईं:हल्का मीठा और नमकीन खाना
हलवा: या सास के हाथों से बना खास पकवान
नारियल और श्रृंगार का सामान: जो बहू को आशीर्वाद स्वरूप दिया जाता है

सरगी खाने के नियम क्या हैं?
सरगी खाने का भी एक खास तरीका और नियम होता है। जानिए किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है:

1. नहाकर ही सरगी खानी चाहिए: सरगी खाने से पहले स्नान कर लेना शुभ माना जाता है।
2. चुपचाप न खाएं: सरगी को अकेले नहीं, बल्कि परिवार के साथ बैठकर प्रेमपूर्वक खाना चाहिए।
3. सास का आशीर्वाद लेना जरूरी: परंपरागत रूप से सास ही सरगी देती है। अगर सास साथ न हो तो किसी बुजुर्ग महिला का आशीर्वाद लिया जाता है।
4. भारी और तला-भुना न खाएं: सरगी में बहुत तैलीय और भारी चीजें खाने से दिनभर व्रत रखने में दिक्कत हो सकती है।
5. मनोयोग से खाएं:सरगी सिर्फ खाने का हिस्सा नहीं, बल्कि भावनात्मक और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। इसलिए इसे श्रद्धा और मन से ग्रहण करना चाहिए।

क्यों खास है सरगी?
सरगी न सिर्फ एक पौष्टिक आहार है जो दिनभर ऊर्जा देता है, बल्कि ये रिश्तों को भी मजबूती देने का प्रतीक है। इसमें सास का प्यार, बहू की आस्था और परिवार का जुड़ाव झलकता है। करवाचौथ की सुबह सरगी से ही शुभता की शुरुआत मानी जाती है। बता दें कि करवाचौथ की सरगी सिर्फ एक भोजन नहीं, बल्कि एक गहरी परंपरा है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। इसमें न सिर्फ स्वाद होता है बल्कि भावनाएं और आशीर्वाद भी छिपा होता है। अगर आप भी इस करवाचौथ व्रत को रख रही हैं तो सरगी को पूरे सम्मान और श्रद्धा से अपनाएं।

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