यहां एक ही छत के नीचे है शक्ति पीठ और ज्योतिर्लिंग, दुनिया में है पहला और एकमात्र मंदिर, जानें कहां
- Shubhangi Pandey
- 16 Oct 2025 05:08:01 PM
भारत में एक ऐसा मंदिर भी है जहां पर शिव और शक्ति का दोनों का असीम आशीर्वाद मिलता है। एक ऐसा खास मंदिर जहां एक ही छत के नीचे ज्योतिर्लिंग भी है और शक्तिपीठ भी। दरअसल हम बात कर रहे हैं आंध्र प्रदेश के मल्लिकार्जुन मंदिर की। जोकि एक बहुत प्राचीन धार्मिक स्थल है।
एक ही जगह पर ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ
यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है । यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग एक ही छत के नीचे विराजमान हैं। हिंदू ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव अमावस्या को अर्जुन के रूप में और देवी पार्वती पूर्णिमा को मल्लिका के रूप में यहां प्रकट हुए थे। ऐसा माना जाता है कि यहां पूजा करने से अपार मानसिक शांति, धन और यश की प्राप्ति होती है। मंदिर में एक सहस्र लिंग स्थापित है जिसके बारे में माना जाता है कि इसे भगवान राम ने बनवाया था। इस मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली में किया गया है, जिसमें चार प्रवेश द्वार गोपुरम और प्रांगण हैं।
चालुक्य वंश ने कराया निर्माण
मंदिर की स्थापत्य शैली और प्रारंभिक निर्माण में चालुक्य वंश का प्रभाव देखने को मिलता है। बाद में कई राजवंशों ने मंदिर का विस्तार और जीर्णोद्धार किया है। बता दें कि श्री मल्लिकार्जुन स्वामी के नाम पर सातवाहन राजा सातकर्णी ने अपना नाम मल्लाना रखा। दूसरी शताब्दी ईस्वी के पुलुमावी के नासिक प्रशस्ति में आप श्रीशैलम पहाड़ी का सबसे पहला उल्लेख देख सकते हैं। इतिहासकारों के बीच मंदिर के निर्माण को पल्लवों के शासन और रेड्डी राजाओं के शासनकाल के विस्तार से जोड़ने पर भी विवाद हुआ है। कहा जाता है कि प्रलय वर्मा और अनावेमा रेड्डी ने मंदिर तक सड़कें और मंडप बनवाए थे।
दूसरी शताब्दी से अस्तित्व में आया मंदिर
वहीं चौदहवीं शताब्दी के विजयनगर राजवंश के राजा हरिहर द्वितीय ने पाताल गंगा की सीढ़ियां बनवाईं। कृष्णदेवराय के मंत्री चंद्रशेखर ने मंदिर के मंडप बनवाए। बाद में नवाबों, मुगलों और फिर अंग्रेजों ने प्रशासन संभाला और मंदिर का क्षेत्र उनके अधीन आ गया। 1929 में अंग्रेजों ने मंदिर के प्रबंधन के लिए एक समिति का गठन किया। बाद में 1949 में मंदिर को धर्मस्व विभाग के प्रशासन के अधीन स्थानांतरित कर दिया गया। बाद के सालों में उत्तर में गोपुरम के निर्माण की अनुमति छत्रपति शिवाजी ने दी। सातवाहन राजवंश के शिलालेखों से पता चलता है कि यह मंदिर दूसरी शताब्दी से पहचान में आया है।
मंदिर के बारे में प्रचलित कथा
जब पार्वती और शिव ने अपने पुत्रों के लिए पत्नियां ढूंढ़ने का निश्चय किया तो शिव ने सिद्धि (आध्यात्मिक शक्ति) और बुद्धि (बुद्धि) का विवाह गणेश से करवाया। वापस लौटने पर कार्तिकेय क्रोधित हो गए और कुमार ब्रह्मचारी के नाम पर पलानी के क्रौंच पर्वत पर अकेले रहने चले गए। उन्हें मनाने के लिए अपने पिता को आते देखकर उन्होंने किसी दूसरी जगह पर जाने का प्रयास किया। लेकिन देवताओं के अनुरोध पर वहीं रुक गए। जिस स्थान पर पार्वती और शिव रुके थे उसे श्रीशैलम के नाम से जाना गया।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार मंदिर के मुख्य देवता की पूजा चमेली (जिसे स्थानीय भाषा तेलुगु में मल्लिका कहा जाता है) के साथ लिंग के रूप में की जाती थी । जिसकी वजह से इसका नाम मल्लिकार्जुन पड़ा। मल्लिकार्जुन मंदिर का उल्लेख कई प्राचीन हिंदू महाकाव्यों में मिलता है। उदाहरण के लिए अग्नि पुराण में वर्णित है कि राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने यहां तपस्या की थी। उन्होंने भगवान मल्लिकार्जुन स्वामी की पूजा भी की थी। एक और पवित्र हिंदू ग्रंथ स्कंद पुराण के अनुसार त्रेता युग में देवी सीता और भगवान राम इस स्थल पर आए थे।
वहीं द्वापर युग में ऐसा कहा जाता है कि अपने वनवास के दौरान पांडव भाइयों ने इस स्थान पर कुछ समय बिताया था और उन्होंने पूजा-अर्चना भी की थी। कलयुग में भी इस मंदिर का महत्व कम नहीं हुआ है बल्कि काफी बढ़ गया है। महान संतों आदि शंकराचार्य, सिद्ध नागार्जुन, वीरशैव संत अल्लामा प्रभु, शिव सारणी अक्का महादेवी और अन्य ने यहाँ भगवान की पूजा-अर्चना करते हुए काफी समय बिताया है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के पीछे कई कहानियां हैं। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच अपनी शक्तियों की श्रेष्ठता को लेकर बहस छिड़ गई थी। इसलिए इसे सुलझाने के लिए शिव ने उन दोनों की परीक्षा लेने का फैसला लिया। अनंत प्रकाश स्तंभों से शिव ने तीनों लोकों को भेद दिया।
इसके बाद भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु को प्रकाश स्तंभों की अपनी खोज समाप्त करने के लिए कहा। दोनों को एक निश्चित दिशा में नीचे या ऊपर प्रकाश का अंत खोजना था। अंत खोजने में असफल होने पर भगवान विष्णु ने अपनी हार स्वीकार कर ली, जबकि भगवान ब्रह्मा ने झूठ बोला कि उन्होंने अंत पा लिया है। इस पर भगवान शिव ने घोषणा कर दी कि भगवान विष्णु की पूजा सभी युगों में भक्त करेंगे, जबकि ब्रह्मा को याद नहीं किया जाएगा।
श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर के पीछे एक और कथा के अनुसार भगवान शिव तीन जगहों पर शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। जिनमें से एक श्रीशैलम है, जबकि बाकी दो भीमेश्वर/द्रक्षारामम और कालेश्वरम हैं।
वहीं एक दूसरी कथा के अनुसार, शिलाद महर्षि के पुत्र पर्वत ने प्रायश्चित करने के लिए शिव से प्रार्थना की थी। भगवान शिव उनकी प्रार्थना से प्रसन्न हुए और उनकी मनोकामना पूरी की। इसके बाद पर्वत ने पहाड़ी का आकार धारण कर लिया और श्री पर्वत कहलाए जबकि शिव वहीं रुक गए।
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