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Chhoti Diwali : इस दिन को क्यों कहते हैं नरक चतुर्दशी, कब है पूजा का मुहूर्त जानिए सब कुछ

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छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। आज यानी 19 अक्टूबर को मनाई जा रही है। यह पांच दिवसीय दिवाली उत्सव का दूसरा दिन है। इस पर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है। यह खास त्योहार राक्षस नरकासुर पर भगवान कृष्ण की विजय का प्रतीक है। कह सकते हैं कि ये बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

छोटी दिवाली का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार 2025 में नरक चतुर्दशी की चतुर्दशी तिथि 19 अक्टूबर को दोपहर 1:51 बजे शुरू होगी और 20 अक्टूबर को दोपहर 3:44 बजे खत्म होगी। इस अवधि को विशेष रूप से शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दौरान कई शक्तिशाली योग और मुहूर्त बनते हैं:

सर्वार्थ सिद्धि योग - दिन भर
ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 4:43 से 5:34 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त - सुबह 11:43 से दोपहर 12:29 बजे तक
विजय मुहूर्त - दोपहर 2:00 से 2:45 बजे तक
गोधूलि मुहूर्त - शाम 5:47 से शाम 6:13 बजे तक
शाम संध्या - शाम 5:47 से शाम 7:03 बजे तक
अमृत काल - सुबह 9:59 से 11:44 बजे तक
अमृत सिद्धि योग - शाम 5:49 बजे से शुरू होकर अगले दिन सुबह 6:25 बजे तक

नरक चतुर्दशी के दौरान ये समय आध्यात्मिक अनुष्ठानों, प्रार्थनाओं और नए कार्यों की शुरुआत के लिए आदर्श हैं।

छोटी दिवाली का इतिहास और महत्व
दिवाली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार भगवान कृष्ण की राक्षस राजा नरकासुर पर विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार नरकासुर ने 16,000 कन्याओं को बंदी बना लिया था। भगवान कृष्ण ने नरकासुर को पराजित करने के बाद कन्याओं ने सामाजिक तिरस्कार के डर से अपने भविष्य के बारे में उनसे सलाह ली। तब भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा ने निर्णय लिया कि कन्याएं भगवान कृष्ण से विवाह करेंगी और कृष्ण उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे।

छोटी दिवाली शुद्धि का प्रतीक है और आशीर्वाद पाने का समय है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत और निगेटिव ऊर्जा से सुरक्षा पाने का अवसर है। यह त्योहार लोगों को अपने मन, शरीर और परिवेश को शुद्ध करने के लिए प्रोत्साहित करता है जिससे वो दिवाली के भव्य उत्सव के लिए तैयार होते हैं।

छोटी दिवाली के अनुष्ठान
छोटी दिवाली पर कई लोग गंगा नदी में पवित्र स्नान करते हैं जिसे अभ्यंग स्नान कहते हैं। परंपरा के अनुसार यह पवित्र स्नान पिछले पापों को धो देता है और नरक की यातनाओं से बचाता है। इस स्नान में आमतौर पर शरीर को शुद्ध करने के लिए तिल के तेल और उबटन (बेसन, हल्दी और अन्य सामग्रियों से बना लेप) का मिश्रण लगाया जाता है। स्नान के बाद लोग नए कपड़े पहनते हैं। महाराष्ट्र में पूरन पोली और मिसल पाव जैसे पारंपरिक व्यंजन खाना इस मौके पर काफी लोकप्रिय हैं। शाम को घरों को दीयों से रोशन किया जाता है और लोग तरह-तरह की मिठाइयों और व्यंजनों का आनंद लेते हैं।

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