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Bengal में आज काली पूजा की धूम, जानिए 77 साल पुरानी नेहरू कॉलोनी में भक्तिमय माहौल के बारे में

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आज दिवाली और काली पूजा का खास मौका है। इस मौके पर बंगाल में धूम देखने को मिल रही है। 77 साल पुराने नेहरू कॉलोनी काली पूजा में आध्यात्मिकता और कलात्मकता मिलकर दिव्य शक्ति का एक अद्भुत उत्सव मनाया जाता है। इस साल की थीम "तन्त्रेर आलो ते कालिमा" (तंत्र के प्रकाश में देवी)  है। जो भक्ति को एक रहस्यमयी नज़रिए से दर्शाती है। जो पंडाल को एक ऐसे स्थान में बदल देती है जहां आस्था और पारलौकिकता का मिलन होता है।

आस्था और कला की मिसाल
उत्सव में आस्था और कला का संगम पीढ़ियों से पूजी जाने वाली देवी काली की स्थायी मूर्ति, इस उत्सव का आध्यात्मिक केंद्र है। पवित्र दीपों की रोशनी और आभा में नहाई और जटिल तांत्रिक आकृतियों से घिरी देवी की उपस्थिति विस्मय और शांति दोनों का संचार करती है। प्रकाश, छाया और प्रतीकात्मकता का ये संबंध एक अलौकिक वातावरण का निर्माण करता है। ऐसा वातावरण जो भक्तों को ऐसा महसूस कराता है मानो स्वयं मां काली उनके बीच अवतरित हुई हों।

कैसी है मां की स्थाई मूर्ति
स्थायी मूर्ति शक्ति और शांति का संचार करती है। इस दिव्य दृश्य के साथ, शामें साधुओं और स्थानीय पुजारियों द्वारा किए जाने वाले अनुष्ठानों, होम (अग्नि पूजा) और यज्ञों से जीवंत हो उठती हैं। लयबद्ध मंत्रोच्चार, घंटियों की ध्वनि और धूप की सुगंध से वातावरण भर जाता है, जो आगंतुकों के आध्यात्मिक अनुभव को और भी बढ़ा देता है।

अनुष्ठान और मंत्रोच्चार आध्यात्मिक वातावरण को और भी निखारते हैं। अपनी सौंदर्यपरक चमक के अलावा इस साल की पूजा कला और आंतरिक जागृति के सम्मिश्रण की कोलकाता की चिरस्थायी परंपरा को श्रद्धांजलि है। पंडाल के डिज़ाइन से लेकर अनुष्ठानों तक, हर तत्व इस विश्वास को दर्शाता है कि सच्ची पूजा केवल प्रार्थना में ही नहीं, बल्कि रचनात्मक अभिव्यक्ति में भी निहित है।

ये उत्सव देवी की शाश्वत दिव्य ऊर्जा को दर्शाता है भक्तों और आगंतुकों, दोनों के लिए, नेहरू कॉलोनी की काली पूजा एक उत्सव से कहीं बढ़कर है - ये आस्था, ऊर्जा और देवी के शाश्वत प्रकाश की यात्रा है।

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