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असम का उग्रतारा शक्तिपीठ जहां मां सती की नाभि गिरी थी, पानी के मटके में मिलते हैं देवी के दर्शन

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असम के गुवाहाटी में स्थित श्री-श्री उग्रतारा शक्तिपीठ भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है. माना जाता है कि जहां-जहां माता सती के अंग गिरे थे वहां शक्तिपीठ बने और उनमें से एक है उग्रतारा मंदिर. यहां मां सती पानी से भरे मटके के रूप में विराजमान हैं. भक्तों का विश्वास है कि इस मंदिर में दर्शन करने से जीवन की हर बाधा खत्म हो जाती है, तंत्र-मंत्र, जादू-टोना और नकारात्मक शक्तियों का असर समाप्त हो जाता है.

क्यों कहलाती हैं मां उग्रतारा
पौराणिक मान्यता के मुताबिक ऋषि वशिष्ठ ने कठोर तपस्या से माता को प्रसन्न किया था. माता उनके सामने उग्र रूप में प्रकट हुईं और तभी से उन्हें उग्रतारा कहा जाने लगा. कहा जाता है कि मां उग्रतारा के दर्शन से उग्र से उग्र संकट भी शांत हो जाता है. भक्तों का विश्वास है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से मां की पूजा करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. यहां बिना माता की अनुमति कोई भी सिद्धि पूरी नहीं होती, इसलिए साधक और तांत्रिक दोनों इस मंदिर में साधना करने आते हैं.

जहां माता सती की नाभि गिरी 
पौराणिक कथा के मुताबिक जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में देह त्याग दी तब भगवान शिव ने उनके शरीर को उठाकर तांडव करना शुरू कर दिया. उस समय भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े किए, जो अलग-अलग जगहों पर गिरे. माना जाता है कि मां सती की नाभि असम के इसी स्थान पर गिरी थी जहां अब उग्रतारा शक्तिपीठ स्थित है. इसलिए ये स्थान नाभि शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है.

पानी के मटके में होती है मां की पूजा
इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां माता सती की कोई मूर्ति नहीं है. इसके बजाय मां को पानी से भरे मटके के रूप में पूजा जाता है. मटके के पास एक छोटी गुफा जैसी संरचना है, जहां भक्त दीप जलाते हैं और मां से आशीर्वाद मांगते हैं. माना जाता है कि इस पवित्र जल में माता की शक्ति सदा विद्यमान रहती है. मंदिर के पीछे की ओर भगवान शिव का मंदिर है और ऐसा कहा जाता है कि मां उग्रतारा के दर्शन तभी पूरे माने जाते हैं जब भक्त भगवान शिव के भी दर्शन कर लेते हैं.

नवरात्र में लगता है भक्तों का मेला
हालांकि पूरे साल मंदिर में भक्तों की भीड़ रहती है लेकिन नवरात्र के समय यहां का नजारा बेहद अद्भुत होता है. मां के जयकारों से पूरा मंदिर परिसर गूंज उठता है. श्रद्धालु दूर-दूर से आकर मां के दरबार में मत्था टेकते हैं और सुख-शांति की कामना करते हैं.

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