अगर रावण ब्राह्मण था तो उसे क्यों माना गया असुरों का राजा ? क्या है सच्चाई
- Shubhangi Pandey
- 02 Oct 2025 01:32:07 PM
दशहरा और रामलीला की परंपरा हमारे देश में काफी पुरानी है। देश में में हर साल जगह - जगह रावण दहन होता है। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में रावण को जलाया जाता है। लेकिन एक सवाल अक्सर लोगों के मन में उठता है कि अगर रावण असुरों का राजा था तो उसे ब्राह्मण क्यों माना जाता है? आखिर उसकी पहचान असुर से जुड़ी थी या ब्राह्मण से? यह सवाल सिर्फ धार्मिक मान्यता से नहीं, बल्कि इतिहास और परंपरा की गहराई से भी जुड़ा है।
रावण की वंशावली
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, रावण ऋषि पुलस्त्य का वंशज था। पुलस्त्य महर्षि ब्रह्मा के मानस पुत्र थे और उन्हें सप्तऋषियों में गिना जाता है। पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा ऋषि हुए, जिनकी शादी असुर कुल की कन्या कैकसी से हुई। इसी विवाह से रावण और उसके भाई कुंभकर्ण और बहन शूर्पणखा का जन्म हुआ। इस तरह रावण का जन्म एक ब्राह्मण पिता और असुर माता से हुआ। यही कारण है कि उसमें दोनों वंशों की विशेषताएं दिखाई देती हैं । जैसे - विद्या, तपस्या और ब्राह्मणत्व पिता से जबकि शक्ति, अहंकार और युद्धकला का असर असुर कुल से।
विद्या और तप का धनी रावण
रावण सिर्फ असुरों का राजा ही नहीं था, बल्कि एक महाबली विद्वान और महान तपस्वी भी था। उसने कठोर तपस्या करके भगवान शिव से कई वरदान प्राप्त किए। रावण को शिवभक्त के रूप में भी जाना जाता है और उसके लिखे गए शिव तांडव स्तोत्र को आज भी भक्ति भाव से पढ़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि उस समय की परंपरा में जो व्यक्ति वेद-शास्त्र का ज्ञाता हो तपस्या और यज्ञ करने में सक्षम हो उसे ब्राह्मण माना जाता था। रावण ने वेदों का गहन अध्ययन किया था और वह एक श्रेष्ठ ज्योतिषी, आयुर्वेदाचार्य और संगीतज्ञ भी था। यही कारण है कि उसे ब्राह्मण कुल में स्थान दिया गया।
असुरों का राजा क्यों कहलाया?
रावण का राज्य लंका था जो सोने की नगरी कही जाती है। उसने अपने पराक्रम से देवताओं और असुरों पर विजय पाई और असुरों का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। रावण ने इंद्र, यम, कुबेर, वरुण तक को परास्त किया और देवताओं को अपने अधीन कर लिया था। इसी कारण वह असुरों का राजा कहलाया। लेकिन राजा कहलाना और वंश से असुर होना दोनों अलग बातें थीं। असुरों का नेतृत्व करने के बावजूद उसकी जन्मजात पहचान ब्राह्मण की ही थी।
रावण और ब्राह्मणत्व का विरोधाभास
यहां सबसे बड़ा विरोधाभास यही है कि रावण ब्राह्मण कुल में पैदा हुआ था। विद्वान और तपस्वी था लेकिन अपने कर्मों और अहंकार के कारण उसने अधर्म का रास्ता अपनाया। सीता हरण और अत्याचारों ने उसे राक्षस की श्रेणी में ला दिया।
रामायण में वाल्मीकि ने उसे विद्वान ब्राह्मण तो कहा, लेकिन उसके अत्याचारों की वजह से उसे राक्षस स्वरूप माना। यही कारण है कि दशहरा पर उसका दहन किया जाता है।
राम ने भी निभाया ब्राह्मण सम्मान
रामायण के एक प्रसंग में यह साफ झलकता है कि भगवान राम ने रावण को ब्राह्मण मानते हुए उसका अंतिम संस्कार विधि-विधान से कराया। युद्ध में जब रावण वध हुआ, तो लक्ष्मण ने राम से पूछा कि उसके अंतिम संस्कार की क्या व्यवस्था की जाए। तब राम ने कहा कि रावण भले ही अहंकारी और अधर्मी था, लेकिन वह ब्राह्मण कुल का विद्वान था। उसका अंतिम संस्कार सम्मानपूर्वक होना चाहिए।
यह प्रसंग दर्शाता है कि राम ने धर्म और परंपरा के अनुसार ब्राह्मण के सम्मान को सर्वोपरि रखा।
कह सकते हैं कि रावण का व्यक्तित्व विरोधाभासों से भरा हुआ था। जन्म से वह ब्राह्मण था और अपनी विद्या, तपस्या और गहन शास्त्र ज्ञान के कारण उसे महापंडित माना गया। अपने पराक्रम और शक्ति के दम पर उसने लंका पर राज किया और देवताओं को परास्त कर असुरों का राजा कहलाया। लेकिन सीता हरण, अहंकार और अत्याचारों ने उसे राक्षस की श्रेणी में ला खड़ा किया। इसी वजह से रावण को एक ही समय में ब्राह्मण, असुरों का राजा और राक्षस तीनों पहचानें मिलीं जो उसके बहुआयामी और जटिल व्यक्तित्व को दर्शाती हैं।
इसीलिए रावण का चरित्र बहुआयामी है। उसे सिर्फ राक्षसन कहना उचित नहीं है क्योंकि वह ब्राह्मण और विद्वान भी था। लेकिन उसका पतन इसलिए हुआ क्योंकि उसने अपने ज्ञान और शक्ति का उपयोग धर्म के मार्ग पर न करके अधर्म और अहंकार की पूर्ति के लिए किया।
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