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वो मस्जिद जो मुगलों संग Amber रियासत के रिश्तों की बानगी है, जानिए उसके कुछ अनकहे राज!

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इतिहास गवाह है कि मुगल बादशाह और आमेर रियासत के बीच अच्छे रिश्ते रहे हैं. दोस्ती के बाद आमेर रियासत के अच्छे दिन शुरू हो गए. राजा भारमल और मान सिंह प्रथम का शत्रु अजमेर का सूबेदार मिर्जा शरफुद्दीन हुसैन का मिजाज नरम पड़ा. अजमेर का शरफुद्दीन आमेर राज्य को हड़पने का सपना संजोये था. लेकिन आमेर में अकबर का आगमन होने से मारवाड़ के मालदेव ने भी ढूंढाड़ के छीने हुए परगने वापस सौंपे. उस समय नहाण के गोलमाडु मीणों ने भी कछवाहों की नींद की.

मीनार अकबर के आगमन की गवाह
रणथम्भौर दुर्ग जीत और अजमेर के ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मन्नत मांगने के लिए निकला अकबर रास्ते में आमेर में रुका. इतिहासकारों के मुताबिक कनक वृंदावन के पास और हाडीपुरा आमेर में बनी कोस मीनार अकबर के आमेर आगमन की गवाह है. 1569 हिजरी सन् 977 में अकबर के आमेर आने पर आमेर के राजा भारमल ने नमाज अदा करने के लिए अकबरी मस्जिद बनवाई. जिसके बाद आमेर में ठहरने के दौरान अकबर ने मस्जिद में नमाज अदा की.

औरंगजेब के शासन में विस्तार
औरंगजेब के राज्य के अंतिम दिनों में अकबरी मस्जिद का विस्तार किया गया. कुछ ग्रथों में लिखा है कि अकबर के आमेर आने की खुशी में भारमल ने आमेर रियासत में दीपकों की रोशनी से सजावट करवाई.

हाड़ी रानी ने खाया विषाक्त
ग्रंथों में लिखा है कि अकबर के आमेर आने पर एक ओर जश्र का माहौल था, वहीं जनाना महलों की हाड़ी रानी ने इसके विरोध में विषाक्त पदार्थ खाकर मरने का प्रयास किया, लेकिन उपचार कर उन्हें स्वस्थ किया गया. इसके बाद वो महलों को छोड़ आमेर के हाड़ीपुरा की हवेली में रहने लगीं. हवेली की वजह से आमेर का हाड़ीपुरा मोहल्ला आज भी प्रसिद्ध है. राजा भारमल और मान सिंह प्रथम का शत्रु अजमेर का सूबेदार मिर्जा शरफुद्दीन हुसैन का मिजाज नरम पड़ा. अजमेर का शरफुद्दीन आमेर राज्य को हड़पने का सपना संजोये था. लेकिन आमेर में अकबर का आगमन होने से मारवाड़ के मालदेव ने भी ढूंढाड़ के छीने हुए परगने वापस सौंपे. उस समय नहाण के गोलमाडु मीणों ने भी कछवाहों की नींद की.

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