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क्या ट्रंप को ‘लालच’ में उलझा रहे मुनीर ? विशेषज्ञों की चेतावनी क्या कहती है?

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पाकिस्तान सेना प्रमुख आसिम मुनीर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के दुर्लभ खनिज और तेल भंडार में निवेश के लिए लुभा रहे हैं. लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह सौदा अमेरिका को बलूचिस्तान में एक नया अफगानिस्तान जैसे संकट में फंसा सकता है. टाइम्स ऑफ इजरायल की रिपोर्ट के मुताबिक इन क्षेत्रों में खनन बेहद जोखिम भरा है जिसे ट्रंप की ब्रीफिंग से छिपाया गया. 

मुनीर का लालच और ट्रंप की दिलचस्पी
जून 2025 में वाशिंगटन में आसिम मुनीर और ट्रंप की मुलाकात में बलूचिस्तान के रेको डिक प्रोजेक्ट और खनिज भंडारों पर चर्चा हुई. ट्रंप ने इन खनिजों को राष्ट्रीय सुरक्षा की प्राथमिकता बताया, ताकि चीन पर निर्भरता कम हो. मुनीर ने दावा किया कि रेको डिक से 2028 से हर साल 2 बिलियन डॉलर की कमाई हो सकती है. लेकिन विशेषज्ञ सर्जियो रेस्टेली ने चेताया कि बलूचिस्तान, वजीरिस्तान, और खैबर पख्तूनख्वा में खनन लगभग असंभव है क्योंकि ये क्षेत्र पाकिस्तानी सेना के लिए भी शत्रुतापूर्ण हैं.

बलूचिस्तान का दर्द
बलूचिस्तान में कॉपर, सोना, लिथियम, और रेयर अर्थ मिनरल्स के विशाल भंडार हैं, लेकिन यह पाकिस्तान का सबसे गरीब प्रांत है. 2010 के 18वें संशोधन के बावजूद प्रांतों को अपने संसाधनों का अधिकार नहीं मिला. रेको डिक और सैंडक जैसे प्रोजेक्ट्स ने स्थानीय लोगों को विस्थापन, प्रदूषण और अशांति दी, जबकि मुनाफा केंद्र सरकार और सेना को गया. चीन के CPEC प्रोजेक्ट्स ने भी स्थानीय गुस्सा बढ़ाया है और अब अमेरिकी निवेश इसे और भड़का सकता है.

बलोच नेताओं का विरोध
बलोच नेता मीर यार बलोच ने ट्रंप को चेताया कि ये संसाधन बलूचिस्तान के हैं न कि पाकिस्तान के. उन्होंने इसे “पाकिस्तान की अवैध कब्जे वाली जमीन” बताया और कहा कि बिना बलोचों की सहमति के कोई खनन नहीं होगा. उन्होंने ISI को आतंकवाद का समर्थक बताते हुए चेताया कि इसका फायदा आतंकी गतिविधियों को मिलेगा.

विशेषज्ञों की चेतावनी
रेस्टेली और अन्य विश्लेषकों ने कहा कि अमेरिका अगर इस सौदे में शामिल हुआ, तो बलूचिस्तान में दमन बढ़ेगा. गांवों को घेर लिया जाएगा, विरोध को अपराध माना जाएगा और सेना तैनात होगी. इससे अमेरिका-विरोधी गुस्सा भड़केगा, क्योंकि स्थानीय लोग इसे शोषण मानेगें. यह अफगानिस्तान जैसे हालात पैदा कर सकता है, जहां अमेरिका 20 साल तक फंसा रहा.
बहरहाल पाकिस्तान की कर्ज में डूबी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए मुनीर का यह दांव जोखिम भरा है. विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका को कूटनीति और पारदर्शिता से काम लेना होगा वरना यह निवेश नुकसानदायक साबित होगा.

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