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Sahastradhara-Maldevta में बार-बार क्यों मच रही तबाही? वैज्ञानिकों की रिपोर्ट ने खोले खतरे के राज

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देहरादून के सहस्रधारा और मालदेवता इलाके में हर बार तेज बारिश के बाद जो तबाही देखने को मिलती है, वो कोई अचानक आई आपदा नहीं बल्कि वैज्ञानिकों की चेतावनियों की अनदेखी का नतीजा है। लगातार कमजोर चट्टानों और भूस्खलन के चलते ये इलाका अब आपदा की प्रयोगशाला बनता जा रहा है। फिर चाहे बात 2022 की हो या 2025 की—हर बार नुकसान और डर का पैमाना बढ़ता जा रहा है।

2022 की तबाही पर हुई थी रिसर्च
मालदेवता में 20 अगस्त 2022 को बादल फटने की वजह से जो तबाही हुई थी, उस पर वाडिया इंस्टीट्यूट, सीएसआईआर-एनजीआरआई और सिक्किम यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने गहराई से रिसर्च की थी। इस रिसर्च में बताया गया कि ये इलाका मेन बाउंड्री भ्रस्ट (MBT) नाम की सक्रिय फॉल्ट लाइन पर है, जो इसे बेहद भूगर्भीय रूप से संवेदनशील बनाता है। इस इलाके की चट्टानें बेहद कमजोर और भुरभुरी हैं  और ढलानों की तीव्रता ज्यादा है, जिससे थोड़ी सी बारिश में भी भारी भूस्खलन और मलबा नीचे गिरने लगता है।

बदलते मौसम के साथ बिगड़ता संतुलन
वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन, अवैज्ञानिक विकास और अस्थिर भू-भाग—ये तीन मिलकर पहाड़ों को मौत का घर बना रहे हैं। बारिश के दौरान अगर नदी में पहले से मलबा जमा है तो वह तेज बहाव के साथ नीचे आकर भारी तबाही मचाता है। यही 2022 में बाल्दी नदी में हुआ और यही अब फिर देखने को मिल रहा है।

बेतरतीब निर्माण बना बड़ा खतरा
इस पूरे क्षेत्र में बिना योजना के हो रहा निर्माण कार्य सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। नदी के बिल्कुल किनारे और बीच में घर और होटल बना दिए गए हैं। इससे नदी का बहाव रुकता है, पानी जमा होता है और फिर जब बहता है तो बाढ़ और मलबा साथ लाता है, जो कई बार जानलेवा साबित होता है।

क्या है समाधान?
नदी किनारे निर्माण पर सख्त प्रतिबंध लगे, खासकर निचली फ्लड टेरेस पर
हर संवेदनशील इलाके में ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन (AWS) लगाए जाएं
हर विकास योजना से पहले पर्यावरणीय प्रभाव का गहराई से आकलन हो
स्थानीय लोगों को किया जाए जागरूक कि वो नदी के पास मकान न बनाएं

बता दें कि प्राकृतिक आपदाओं को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता, लेकिन अगर वैज्ञानिकों की बातों पर अमल किया जाए तो नुकसान जरूर कम किया जा सकता है। सहस्रधारा और मालदेवता जैसे खूबसूरत पर्यटन स्थलों को तबाही से बचाने के लिए अब ठोस कदम उठाना जरूरी है, वरना हर साल की बारिश फिर एक नई त्रासदी बनकर सामने आएगी।

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