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कहानी Fathima Beevi की, हिजाब में कोर्ट से Supreme Court तक का सफर, पहली महिला जज

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5 अक्टूबर 1989 का वो दिन जब मीरा साहिब फातिमा बीवी ने भारत के सुप्रीम कोर्ट में पहली महिला जज बनकर इतिहास रच दिया। केरल के पथानमथिट्टा में 1927 में जन्मी फातिमा बीवी ने रूढ़ियों को धता बताकर महिलाओं के लिए कानून की दुनिया में नया रास्ता बनाया। उनके पिता अन्नवीटिल मीरा साहिब रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट में सरकारी कर्मचारी थे। मां खदीजा बीवी के साथ वो छह बेटियों और दो बेटों के परिवार की सबसे बड़ी संतान थीं। उस दौर में मुस्लिम लड़कियों को पढ़ाई से दूर रखा जाता था, लेकिन फातिमा के पिता की सोच अलग थी। उन्होंने अपनी बेटियों को पढ़ने-लिखने की पूरी आजादी दी। फातिमा ने पथानमथिट्टा के कैथोलिक स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की, फिर महिला कॉलेज से केमिस्ट्री में ग्रेजुएशन पूरा किया।

पिता की सलाह आई काम
फातिमा केमिस्ट्री में मास्टर्स करना चाहती थीं, लेकिन पिता ने उन्हें कानून की राह दिखाई। उनकी सलाह थी कि शिक्षण तक सीमित रहने की बजाय लॉ से बड़ा मुकाम हासिल होगा। फातिमा ने बात मानी और तिरुवनंतपुरम के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में दाखिला लिया। 1949-50 में लॉ ग्रेजुएशन पूरा किया और 1950 में बार काउंसिल की परीक्षा में गोल्ड मेडल जीता। ये वो दौर था जब मुस्लिम लड़कियां कॉलेज जाने से कतराती थीं। फातिमा ने न सिर्फ पढ़ाई की, बल्कि हिजाब पहनकर कोल्लम जिला अदालत में जूनियर वकील के तौर पर प्रैक्टिस शुरू की। रूढ़िवादी मुस्लिम समुदाय को ये पसंद नहीं था, लेकिन फातिमा ने हार नहीं मानी। उनकी हिम्मत ने समाज की सोच को चुनौती दी।

मुंसिफ से हाई कोर्ट तक का शानदार सफर
आठ साल वकालत के बाद फातिमा ने 1958 में एक प्रतियोगी परीक्षा पास की और ज्यूडिशियल सर्विस जॉइन की। ये उनके करियर का टर्निंग पॉइंट था। 1974 में वो जिला सत्र न्यायाधीश बनीं। उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें 1983 में केरल हाई कोर्ट का जज बनाया। फिर 1989 में वो सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं, जो भारतीय न्यायिक इतिहास का गोल्डन मोमेंट था। फातिमा बीवी देश की पहली महिला सुप्रीम कोर्ट जज बनीं। 1989 से 1992 तक उनके कार्यकाल में कई ऐतिहासिक फैसले आए। उनकी निष्पक्षता और विद्वता ने सबको प्रभावित किया। बाद में वो तमिलनाडु की गवर्नर बनीं, जो उनके करियर का एक और गर्व भरा पल था।

महिला सशक्तिकरण की मिसाल
फातिमा बीवी ने सिर्फ कानून की किताबें ही नहीं, बल्कि समाज की सोच को भी बदला। उनकी उपलब्धियां उन तमाम महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीं, जो कानूनी पेशे में आना चाहती थीं। मुस्लिम समुदाय में लड़कियों की पढ़ाई और करियर को लेकर जो रूढ़ियां थीं, फातिमा ने उन्हें तोड़ा। वो न सिर्फ अपने परिवार, बल्कि पूरे देश की बेटियों की रोल मॉडल बनीं। 23 नवंबर 2023 को 96 साल की उम्र में कोल्लम में उनका निधन हुआ। देश ने एक महान हस्ती को खो दिया। उनकी कहानी आज भी हर उस लड़की को हिम्मत देती है, जो सपने देखती है।

आज भी चमकता है उनका जज्बा
फातिमा बीवी की जिंदगी एक ऐसी किताब हैं, जिसमें हर पन्ना साहस और मेहनत की कहानी कहता है। रूढ़ियों से लड़कर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचना कोई छोटी बात नहीं। उनकी विरासत आज भी ज्यूडिशियल सिस्टम में दिखती है, जहां अब ज्यादा महिलाएं जज बन रही हैं। वो एक ऐसी मशाल थीं, जिसने अंधेरे को रोशनी से भर दिया। फैंस और फॉलोअर्स X पर उनकी कहानी शेयर कर रहे हैं, "फातिमा बीवी - हिम्मत की मिसाल!" उनकी जिंदगी हर उस इंसान को सिखाती है कि सही मकसद और मेहनत से कोई भी सपना पूरा हो सकता है।

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