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आमिर खान मुत्ताकी ने दारुल उलूम देवबंद का दौरा किया, आखिर क्यों?

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अफग़ानिस्तान के हालात और भारत-तालिबान संबंधों में हालिया बदलाव के बीच आमिर खान मुत्ताकी की भारत में यह ऐतिहासिक यात्रा कई मायनों में नायाब साबित हो रही है। खासतौर से उनका शनिवार को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में स्थित दारुल उलूम देवबंद पहुंचना न केवल धार्मिक स्तर पर बल्कि राजनीतिक और वैचारिक दृष्टि से भी बड़ा संदेश लेकर आया।

क्या है खासियत इस दौरे में?
यह पहला मौका है जब 2021 में तालिबान का सत्ता में वापस आना के बाद किसी वरिष्ठ तालिबान नेता ने भारतीय धरती पर कदम रखा है। आमिर खान मुत्ताकी छह दिन की राजनयिक यात्रा के दौरान शनिवार को दक्षिण एशिया के सबसे प्रभावशाली इस्लामी शिक्षण संस्थानों में से एक दारुल उलूम देवबंद पहुंचे।

देवबंद का महत्व 
दारुल उलूम देवबंद केवल एक मदरसा नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और वैचारिक पहचान है। दक्षिण एशिया में इस्लामी शिक्षण और विद्वत्ता का मूलाधार बनने वाला यह संस्थान अफ़ग़ानिस्तान और तालिबान के विचारधारा के विकास में गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक रिश्ते रखता है। कई वरिष्ठ तालिबान कमांडरों ने इसी विचारधारा को अक्स किया है जो यहां सिखाया जाता है। मुत्ताकी ने कहा वो देवबंद आए हैं क्योंकि यह इस्लामी दुनिया में एक महत्वपूर्ण केंद्र है और अफ़ग़ानिस्तान और देवबंद के बीच पुराने रिश्ते बने हुए हैं। उनका इशारा इस ओर था कि माद्रासों के छात्रों को भी धर्म-अध्ययन के लिए देवबंद आने के अवसर मिलें।

मुत्ताकी का हुआ भव्य स्वागत
मुत्ताकी का स्वागत भव्य तरीके से किया गया। उन्होंने केंद्रीय पुस्तकालय में हदीस पर चर्चा की और हदीस सिखाने की अनुमति भी ली। उन्हें हदीस सौदार प्रदान किया गया, जिससे अब वो मौलाना आमिर खान मुत्ताकी क़ास्मी के शीर्षक का अधिकार रखते हैं। इस ऑफ़लेट के बाद उनका इस्लामी शिक्षा जगत से रिश्ता और मजबूत हो गया है।

यात्रा की राजनीतिक और वैचारिक रणनीति
मुत्ताकी की यह यात्रा राजनयिक नीयत से अधिक, प्रतीकात्मक रूप से तालिबान और भारत के बीच आयाम विस्तार का बयान है। भारत भी इस दौरे को एक प्रॅग्रामैटिक कदम के तौर पर देखता है । वह तालिबान से संवाद और क्षेत्रीय गतिशीलता में बराबर सहभागी बनना चाहता है। देवबंद दौरा इस रणनीति को धार्मिक और शैक्षिक आधार देता है जिससे दोनों देशों के रिश्ते में विश्वास और संपर्क का नया दौर शुरू होने की संभावना बन रही है।

यात्रा के बीच सुरक्षा व्यवस्था मुस्तैद
इस यात्रा में उत्तर प्रदेश पुलिस और खुफ़िया तंत्र सक्रिय रहे। प्रशासन ने व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की और प्रोग्राम को शांतिपूर्ण तरीके से पूरा करवाया। छात्र, शिक्षक और स्थानीय लोग पुष्प वर्षा और स्वागत भाषणों के साथ मुत्ताकी का उत्साह से स्वागत किया।

बता दें कि मुत्ताकी ने भारत-काबुल संबंधों को उज्जवल बताया और भविष्य में ज़्यादा राजनयिक और शैक्षिक संपर्क की संभावना जताई। उनके अनुसार, वो भारतीय मुसलमानों को अफ़ग़ानिस्तान आने के लिए आमंत्रित करेंगे और आने वाले समय में ये संपर्क और गहराएंगे।

दारुल उलूम देवबंद का दौरा सिर्फ धार्मिक महत्व नहीं रखता, यह एक रणनीतिक संकेत है कि तालिबान सरकार और भारत दोनों अपनी बातचीत को केवल राजनयिक दायरे तक सीमित रखे नहीं बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक और शैक्षिक स्तरों तक ले जाना चाहते हैं। यह कदम दोनों देशों के लिए नए युग की शुरुआत जैसा नजर आता है – जहाँ राजनयिक नहीं, बल्कि ‘संवाद और शिक्षा’ ही सबसे बड़ा सेतु बने।

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