दिल्ली में अफ़ग़ान दूतावास ने महिला पत्रकारों को रोका, भारत सरकार की भूमिका पर मचा बवाल, कानून क्या कहता है?
- Shubhangi Pandey
- 12 Oct 2025 12:33:03 PM
नई दिल्ली में अफ़ग़ानिस्तान के दूतावास में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर ज़बरदस्त विवाद खड़ा हो गया है। इस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को शामिल होने से रोक दिया गया, जिसके बाद विपक्ष और मीडिया संस्थाओं ने कड़ी नाराज़गी जताई है।
महिला पत्रकारों को क्यों रोका गया?
शुक्रवार को अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के बीच द्विपक्षीय बातचीत हुई। इसके बाद दिल्ली स्थित अफ़ग़ान दूतावास में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी गई। इस कार्यक्रम में मौजूद कई महिला पत्रकारों ने दावा किया कि उन्हें अंदर जाने से मना कर दिया गया।
भारत सरकार ने क्या कहा?
विवाद के बाद विदेश मंत्रालय ने तुरंत सफाई दी कि भारत का इस प्रेस कॉन्फ्रेंस से कोई लेना-देना नहीं था। मंत्रालय ने साफ कहा कि यह कार्यक्रम अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री का निजी आयोजन था, और भारत सरकार इसमें शामिल नहीं थी। भाजपा की तरफ से भी कहा गया कि प्रेस कॉन्फ्रेंस दूतावास परिसर में हुई, जो अफ़ग़ान मिशन की ज़िम्मेदारी है और वहां भारत का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं चलता।
विपक्ष का हमला
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि महिला पत्रकारों को बाहर रखना, भारत की हर महिला को ये संदेश देना है कि उनके लिए खड़ा होने वाला कोई नहीं है। राहुल के बयान पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जवाब देते हुए कहा कि कांग्रेस सिर्फ अपनी वोट बैंक की राजनीति के लिए भारत की छवि खराब कर रही है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार का इस फैसले से कोई वास्ता नहीं है और आरोप निराधार हैं।
प्रेस संगठनों ने जताई नाराज़गी
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और इंडियन वूमेन प्रेस कॉर्प्स जैसी संस्थाओं ने महिला पत्रकारों को रोके जाने की निंदा की। इन संस्थाओं ने कहा कि वियना कन्वेंशन किसी भी रूप में लिंग आधारित भेदभाव को सही नहीं ठहराता।
वियना कन्वेंशन क्या कहता है?
1961 का वियना कन्वेंशन राजनयिक संबंधों को नियंत्रित करता है। इसका अनुच्छेद 22 कहता है कि किसी भी दूतावास परिसर में मेज़बान देश का कानून प्रवर्तन एजेंसी बिना अनुमति प्रवेश नहीं कर सकती। यानी, अफ़ग़ान दूतावास में भारत के अधिकारियों को दखल देने का हक नहीं है। लेकिन अनुच्छेद 41 ये भी कहता है कि दूतावास को मेज़बान देश के कानूनों और नियमों का सम्मान करना चाहिए। ऐसे में भारत के संविधान में दर्ज लैंगिक समानता के अधिकार का उल्लंघन सवालों के घेरे में है।
क्या दूतावास विदेशी ज़मीन होते हैं?
कानूनन, किसी भी देश का दूतावास उस देश की संपत्ति तो होता है, लेकिन वो उस देश का हिस्सा नहीं माना जाता। दूतावास में स्थानीय कानूनों का सम्मान जरूरी होता है, और किसी भी प्रकार का भेदभाव अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विवाद पैदा कर सकता है।
विवाद क्यों बढ़ा?
मामला सिर्फ महिला पत्रकारों को बाहर रखने तक सीमित नहीं है। विपक्ष का कहना है कि जब भारत सरकार कार्यक्रम में शामिल थी, तो उसे इस भेदभाव को रोकना चाहिए था। वहीं सरकार साफ कर चुकी है कि उसका इस आयोजन से कोई संबंध नहीं है।
बता दें कि अफ़ग़ान दूतावास में महिला पत्रकारों को रोके जाने का मामला भारत में एक संवेदनशील बहस का कारण बन गया है। कानूनी रूप से भारत सीधे इस फैसले के लिए ज़िम्मेदार नहीं है, लेकिन संविधानिक मूल्यों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए, ये सवाल अभी भी खुला है।
Leave a Reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *



