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Afghan-Pak जंग पर Trump के बयान से मची सनसनी, Shahbaz Sharif को बड़ा झटका

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13 अक्टूबर 2025 को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर जारी घातक संघर्ष को लेकर ऐसा बयान दिया जिसने दुनिया भर का ध्यान खींच लिया। उन्होंने कहा, "उन्हें मेरे लौटने तक इंतज़ार करना होगा ये मेरा आठवां युद्ध होगा।" ट्रंप का ये बयान ऐसे समय में आया जब दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है और क्षेत्रीय शांति खतरे में दिख रही है।

कुर्रम हमले के बाद भड़की आग
8 अक्टूबर को पाकिस्तान के कुर्रम ज़िले में टीटीपी (तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) ने घात लगाकर हमला किया जिसमें 11 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। इस हमले के जवाब में पाकिस्तान ने 10 अक्टूबर को अफगानिस्तान के खोस्त और पक्तिका में हवाई हमले किए। इन हमलों के बाद 11 अक्टूबर को तालिबान ने पांच अलग-अलग प्रांतों में जवाबी कार्रवाई की।

दोनों तरफ भारी नुकसान
अफगान सूत्रों के मुताबिक तालिबान के हमलों में पाकिस्तान के 58 सैनिक मारे गए जबकि पाकिस्तान का दावा है कि उन्होंने 200 तालिबानी लड़ाकों को ढेर किया। इस झड़प के चलते कई लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े और सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचा बुरी तरह प्रभावित हुआ। हालात बिगड़ते देख 12 अक्टूबर को दोनों देशों ने ऑपरेशन फिलहाल रोक दिए।

ट्रंप की चुप्पी या सियासी चाल?
ट्रंप का ये हल्का-फुल्का और टालमटोल भरा बयान ऐसे समय आया है जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ को अमेरिका से मजबूत समर्थन की उम्मीद थी। लेकिन ट्रंप ने न तो किसी तरह की मध्यस्थता का भरोसा दिया और न ही पाकिस्तान के पक्ष में कोई ठोस बात कही। इससे ये सवाल खड़ा हो गया है कि क्या ट्रंप इस संघर्ष को लेकर गंभीर हैं या सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी कर रहे हैं।

‘शांति राष्ट्रपति’ की छवि पर उठे सवाल
नोबेल शांति पुरस्कार से चूकने के कुछ ही दिनों बाद ट्रंप ने खुद को गाजा और भारत-पाकिस्तान युद्धविराम समझौते का "शांति राष्ट्रपति" बताया था। मगर अफगान-पाक टकराव जैसे गंभीर मुद्दे पर उनके ठोस कदम न उठाने से उनकी उस छवि पर सवाल उठ रहे हैं। क्या ये ट्रंप की रणनीतिक दूरी है या समर्थन से बचने की चाल?

क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में हलचल
इस संघर्ष ने क्षेत्रीय राजनीति में भी हलचल मचा दी है। सऊदी अरब, कतर और ईरान ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है। इस बीच अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी की दिल्ली यात्रा के दौरान पाकिस्तान ने भारत पर आरोप लगाया कि वह टीटीपी को समर्थन दे रहा है। ये आरोप संयुक्त राष्ट्र की उस रिपोर्ट की याद दिलाते हैं जिसमें तालिबान और टीटीपी के बीच गहरे संबंधों की बात कही गई थी।

पर्दे के पीछे क्या चल रहा है?
हालांकि दोनों पक्षों की ओर से सार्वजनिक तौर पर तल्खी बरकरार है, मगर पर्दे के पीछे कूटनीतिक बातचीत भी जारी है। सवाल ये है कि क्या ट्रंप की हल्की-फुल्की टिप्पणी के पीछे कोई गहरी रणनीति है या ये सिर्फ चुनावी माहौल में दिया गया एक और विवादास्पद बयान?

बता दें कि अफगान-पाकिस्तान संघर्ष ने एक बार फिर साबित कर दिया कि क्षेत्रीय अस्थिरता कितनी जल्दी अंतरराष्ट्रीय संकट का रूप ले सकती है। ट्रंप की टिप्पणी ने जहां उनकी भूमिका पर संदेह खड़े कर दिए हैं, वहीं शहबाज़ शरीफ की उम्मीदें भी कमजोर होती दिख रही हैं। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या अमेरिका सच में शांति की दिशा में कोई कदम उठाएगा या सिर्फ बयानबाज़ी चलती रहेगी।

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