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भारत का 'Mission Moon', जब Chandrayaan-1 ने चांद पर लहराया तिरंगा, दुनिया रह गई दंग

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भारत की अंतरिक्ष यात्रा जिज्ञासा और हिम्मत का ऐसा सफर है, जिसने पूरे विश्व को प्रभावित किया है। 1963 में छोटे से रॉकेट लॉन्च से शुरू हुई कहानी 2008 में एक नए मुकाम पर पहुंची। जब भारत ने ‘चंद्रयान-1’ को सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया। यही वो दिन था जब भारत ने चांद तक अपनी पहचान दर्ज कराई और दुनिया ने देखा कि भारत अब अंतरिक्ष की बड़ी ताकतों में शामिल हो गया है।

चंद्रयान-1 ने लिखी भारत की नई कहानी
22 अक्टूबर 2008 को श्रीहरिकोटा से लॉन्च हुआ चंद्रयान-1 भारत का पहला चंद्र मिशन था। उस दिन करोड़ों भारतीयों की निगाहें आसमान की ओर थीं। सबके मन में गर्व था कि अब हमारा देश भी चांद को करीब से जानने जा रहा है। मिशन का लक्ष्य था चंद्रमा की सतह, खनिजों और वातावरण का अध्ययन करना। वैज्ञानिकों ने पहले इसे पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया, फिर कई बार इंजन चलाकर इसकी ऊंचाई बढ़ाई। 8 नवंबर 2008 को शाम 5:05 बजे वो ऐतिहासिक पल आया जब चंद्रयान चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया। ये भारत के लिए केवल वैज्ञानिक सफलता नहीं थी, बल्कि आत्मविश्वास की उड़ान थी। 

जब भारत ने चांद पर छोड़ा अपना निशान
12 नवंबर तक चंद्रयान की कक्षा घटाकर 100 किलोमीटर कर दी गई। 14 नवंबर को यानी बाल दिवस के दिन चंद्रयान-1 ने ‘मून इम्पैक्ट प्रोब’ छोड़ा। यह छोटा यान सीधे चंद्रमा की सतह पर पहुंचा। इसी प्रोब से मिले आंकड़ों से पहली बार यह जानकारी सामने आई कि चांद पर पानी के अंश मौजूद हैं। यह खोज पूरी दुनिया के लिए चौंकाने वाली थी और भारत के वैज्ञानिकों के लिए गर्व का पल।

चुनौतियों के बीच भी जारी रहा मिशन 
कुछ महीनों बाद अंतरिक्ष यान को अधिक गर्मी की दिक्कत होने लगी। तापमान को नियंत्रित रखने के लिए इसे 200 किलोमीटर ऊंचाई पर ले जाया गया। इसके बाद भी मिशन टीम ने शानदार काम किया। जब इसका स्टार सेंसर खराब हुआ तो वैज्ञानिकों ने जाइरोस्कोप की मदद से इसे संचालित रखा। करीब दस महीने तक लगातार काम करने के बाद 28 अगस्त 2009 को चंद्रयान-1 से संपर्क टूट गया।

पानी की खोज ने बदल दी इतिहास की दिशा
हालांकि मिशन तय समय से पहले खत्म हुआ, लेकिन 95 फीसदी लक्ष्य पूरे हो चुके थे। सबसे बड़ी सफलता रही चंद्रमा पर पानी की खोज जिसने भारत को अंतरिक्ष की दुनिया में अग्रणी देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया। चंद्रयान-1 ने ही आगे चलकर चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 जैसे मिशनों की नींव रखी। ये सिर्फ एक उपग्रह नहीं था, बल्कि भारत की उस भावना का प्रतीक था जो कहती है “असंभव कुछ नहीं।” भारत का ये मिशन मून सिर्फ अंतरिक्ष की जीत नहीं, बल्कि हर भारतीय के आत्मविश्वास की उड़ान है।

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