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भारत को आंख दिखाने वालों से किनारा कर रहा China? पहले Pakistan, अब Saudi Arabia से बढ़ी दूरी

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चीन की विदेश नीति में इन दिनों दिलचस्प बदलाव देखने को मिल रहा है। जो देश कभी बीजिंग के सबसे भरोसेमंद साथी माने जाते थे, अब वही धीरे-धीरे उसके रडार से गायब हो रहे हैं। पहले पाकिस्तान और अब सऊदी अरब दोनों से चीन की दूरी बढ़ती जा रही है। ये वही देश हैं जिन्होंने कभी भारत के खिलाफ चीन के साथ मिलकर रणनीतिक मोर्चा बनाने की कोशिश की थी। अब ऐसा लगता है कि ड्रैगन को समझ आ गया है कि ये देश लंबे वक्त तक उसके किसी काम के नहीं।

‘हर मौसम के दोस्त’ अब बने सिरदर्द
कुछ साल पहले तक पाकिस्तान और चीन के रिश्ते ‘हर मौसम के दोस्त’ कहे जाते थे। चीन ने अरबों डॉलर CPEC (चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) में लगाए थे, जो राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का अहम हिस्सा था। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। 2022 के बाद से चीन ने कई बड़े प्रोजेक्टों से हाथ खींच लिया है।
ML-1 रेलवे लाइन, काराकोरम हाइवे विस्तार, और ग्वादर पोर्ट जैसे प्रोजेक्ट या तो ठप हैं या फाइलों में धूल खा रहे हैं।

बीजिंग की नाराजगी के पीछे पाकिस्तान की राजनीति 
पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता और लगातार बढ़ते आतंकी हमले चीन के लिए बड़ी चिंता बन गए हैं। ग्वादर और बलूचिस्तान में चीनी इंजीनियरों पर हमलों ने बीजिंग को सोचने पर मजबूर कर दिया। कई चीनी नागरिकों की जान गई, जिसके बाद चीन ने सख्त संदेश दिया कि जब तक सुरक्षा पुख्ता नहीं होगी, वो नए निवेश नहीं करेगा। अब चीन ने ML-1 प्रोजेक्ट की फंडिंग को 10 अरब डॉलर से घटाकर 6 अरब डॉलर से भी नीचे कर दिया है। वहीं ग्वादर पोर्ट, जो कभी पाकिस्तान का आर्थिक चमत्कार कहा जाता था, अब वीरान पड़ा है।

अमेरिका से नजदीकी बढ़ा रहा पाकिस्तान
पाकिस्तान ने हाल के महीनों में अमेरिका के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश की है। वॉशिंगटन से F-16 पुर्जों के सौदे और आर्थिक मदद के संकेत मिलते ही चीन को लगा कि पाकिस्तान “दो नावों में पैर” रख रहा है। चीन की नीति साफ है कि या तो पूरी तरह उसके साथ रहो या फिर बाहर जाओ। इसी वजह से अब बीजिंग ने पाकिस्तान से दूरी बना ली है। नए प्रोजेक्टों की घोषणा रुकी हुई है और संयुक्त सैन्य अभ्यास भी स्थगित हैं।

अब सऊदी अरब की बारी
अब चीन और सऊदी अरब के बीच भी रिश्तों में ठंडक दिख रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन ने सऊदी अरब से तेल का आयात लगातार दूसरे महीने घटाया है। नवंबर में बीजिंग सिर्फ 36 मिलियन बैरल तेल खरीदेगा जो पिछले महीने से कम है। चीन को लगता है कि सऊदी अरब धीरे-धीरे अमेरिका के खेमे में लौट रहा है। ओपेक+ में अब फैसलों पर वॉशिंगटन की सहमति का असर दिखता है। साथ ही इजरायल-हमास युद्ध के दौरान सऊदी ने अमेरिका के साथ संतुलित रुख अपनाया, जिससे चीन के पश्चिम एशिया में प्रभाव को झटका लगा है।

ड्रैगन की नई रणनीति– भरोसे की बजाय दूरी
कभी पाकिस्तान और सऊदी अरब को अपने “स्ट्रेटेजिक पार्टनर” कहने वाला चीन अब उनसे सावधान हो गया है। बीजिंग अब ऐसे देशों से दूरी बनाना चाहता है जो भारत के खिलाफ तो हैं, लेकिन खुद अपने हितों के लिए किसी भी वक्त पाला बदल सकते हैं।

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