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जब कोर्ट में गूंजी 7 राउंड गोलियों तड़तड़ाहट, मां ने खुद दी बेटी के कातिल को सज़ा, जानिए Marianne Bachmeier की दर्दनाक कहानी

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6 मार्च 1981, वेस्ट जर्मनी का ल्यूबेक शहर... दोपहर के करीब 3 बजे अदालत में एक मर्डर केस की सुनवाई चल रही थी। कोर्टरूम खचाखच भरा था। तभी काले कोट में एक महिला अंदर दाखिल हुई और चुपचाप एक कोने में खड़ी हो गई। कुछ मिनट बाद अदालत में गोली चलने की आवाज गूंजी। गोली कठघरे में खड़े आरोपी को लगी, जो मौके पर गिर पड़ा। अदालत में सन्नाटा छा गया। पिस्तौल थामे वो महिला थी मैरिएन बाचमेयर (Marianne Bachmeier)। एक ऐसी मां जिसने अपनी बेटी के कातिल को अदालत में ही सज़ा दे दी।

बेटी की मौत ने बदल दी एक मां की दुनिया
मैरिएन बाचमेयर वेस्ट जर्मनी की रहने वाली थीं। उन्होंने 19 साल की उम्र में लव मैरिज की थी और एक बेटी हुई एना। लेकिन शादी ज्यादा दिन नहीं चली और मैरिएन अपनी बेटी के साथ अकेली रहने लगीं। एक दिन सात साल की एना स्कूल के लिए घर से निकली लेकिन वापस नहीं लौटी। तलाश करने पर पता चला कि उनके पड़ोसी कसाई क्लाउस ग्रैबोस्की ने पहले एना का यौन शोषण किया और फिर उसकी हत्या कर दी।

कसाई ने बॉक्स में भरकर फेंकी लाश
पुलिस जांच में सामने आया कि ग्रैबोस्की ने एना की लाश को कार्डबोर्ड बॉक्स में भरकर नहर में फेंक दिया था। वो पहले भी दो बच्चियों के यौन शोषण के मामलों में जेल जा चुका था। जेल से बचने के लिए उसने खुद को नपुंसक बनवा लिया था। लेकिन हैवानियत नहीं गई। इस घटना ने मैरिएन की पूरी दुनिया उजाड़ दी।

कोर्ट में आरोपी को देख मां का खून खौल उठा
ग्रैबोस्की ने शुरू में अपना गुनाह कबूल किया लेकिन बाद में पलट गया। उसने कहा कि वो नपुंसक है और एना उसे ब्लैकमेल कर रही थी। अपने बचाव में उसने दावा किया कि दवाओं के असर से उसे दौरे पड़ते हैं और इसी दौरान उसने गुस्से में बच्ची को मार दिया। कोर्ट में उसे ‘बीमार मानसिक अवस्था’ का फायदा देने की कोशिश की जा रही थी। मैरिएन को महसूस हुआ कि उनकी बेटी को इंसाफ नहीं मिलेगा। तब उन्होंने एक ऐसा कदम उठाया जिसने पूरी दुनिया को हिला दिया।

कोर्ट में चला दीं सात गोलियां
6 मार्च 1981 को सुनवाई के दौरान मैरिएन अपने हैंडबैग में पिस्तौल लेकर कोर्ट पहुंचीं। जैसे ही ग्रैबोस्की के पक्ष में दलीलें दी जाने लगीं उन्होंने बिना कुछ कहे पिस्तौल निकाली और एक के बाद एक सात गोलियां दाग दीं। आरोपी मौके पर ही मारा गया और पूरी अदालत स्तब्ध रह गई।

मैरिएन को मिली सज़ा, लेकिन लोग बने हमदर्द
मैरिएन को हत्या के आरोप में 6 साल की सज़ा सुनाई गई। लेकिन जनभावनाओं को देखते हुए उन्हें सिर्फ 3 साल बाद रिहा कर दिया गया। बहुतों ने कहा कि उन्होंने वही किया जो हर मां अपने बच्चे के लिए करती।

मैरिएन बाचमेयर बन गईं प्रतीक
मैरिएन की कहानी आज भी दुनिया भर में बताई जाती है। एक ऐसी महिला की जिसने कानून से ऊपर अपने मातृत्व की आवाज़ सुनी। जिसने अपनी बच्ची के लिए इंसाफ हासिल करने के लिए अपनी ज़िंदगी दांव पर लगा दी। उनका नाम आज भी “मदर ऑफ जस्टिस” के रूप में याद किया जाता है।

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