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Rajbhar की ‘परमाणु धमाका’ वाली चेतावनी: तीन दलों की ताकत BJP और विपक्ष दोनों के लिए खतरा!

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उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों से पहले सियासी हलचल तेज हो गई है। एनडीए गठबंधन के तीन छोटे दल सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल मिलकर कुछ नया करने की तैयारी में हैं। इन दलों के बीच लगातार बैठकें चल रही हैं और खबर है कि ये तीनों मिलकर पंचायत चुनाव लड़ सकते हैं। अगर ये प्रयोग कामयाब हुआ, तो 2027 के विधानसभा चुनाव में भी इसे दोहराया जा सकता है।

राजभर का बड़ा बयान
सुभासपा के सुप्रीमो ओमप्रकाश राजभर ने इस संभावित गठबंधन को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा,“हम तीनों दल तालकटोरा (दिल्ली) में मिले और अपनी ताकत दिखाई। हम यूपी की राजनीति के इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन हैं। जब हम तीनों साथ होंगे, तो वही परमाणु बम यानी हमारी असली ताकत बनेगी।” इस बयान से साफ हो गया कि राजभर इस नए गठबंधन को बहुत गंभीरता से देख रहे हैं और इसे अपनी ताकत का प्रदर्शन मानते हैं।

अनुप्रिया पटेल की मांग का समर्थन
राजभर ने अनुप्रिया पटेल की मांग का भी समर्थन किया। उन्होंने कहा कि पंचायत चुनाव में ओबीसी क्रिमी लेयर की सीमा 8 लाख से बढ़ाकर 15 लाख होनी चाहिए। बढ़ती महंगाई और जरूरतों को देखते हुए ये जरूरी है। इसके साथ ही राजभर ने ओबीसी मंत्रालय के गठन की भी मांग की। उनका कहना था कि जब जाट और राजपूत रेजिमेंट हो सकती है, तो ओबीसी कल्याण के लिए मंत्रालय क्यों नहीं होना चाहिए।

बीजेपी और विपक्ष दोनों के लिए संदेश
राजभर का ये बयान बीजेपी और विपक्ष दोनों के लिए संदेश माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पंचायत चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं होते, लेकिन ये बयान सीधे बीजेपी और विपक्ष को चेतावनी देता है। असल मकसद 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले अपनी ताकत दिखाना और राजनीतिक दबाव बनाना है।

विपक्ष के लिए भी चेतावनी
राजभर का ये बयान विपक्ष के लिए भी एक संकेत है। अगर सुभासपा, निषाद और कुर्मी-कोइरी वोट बैंक एकजुट हो गया, तो कई सीटों पर इसका निर्णायक असर पड़ सकता है। फिलहाल, पंचायत चुनाव इस नए सियासी प्रयोग की पहली परीक्षा होंगे। इसका असर आगे की राजनीति और 2027 विधानसभा चुनाव की रणनीति पर भी साफ दिखेगा।

इस नए गठबंधन की तैयारी और राजभर के बयान से ये साफ हो गया है कि छोटे दल भी बड़े खेल खेल सकते हैं और अपनी ताकत दिखा सकते हैं। 2025 के पंचायत चुनाव में इनकी चाल पर सबकी नजर टिकी है, और इसका असर आने वाले वर्षों की राजनीति पर भी पड़ने वाला है।

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