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Azam Khan और Mayawati का गठजोड़ नामुमकिन? 5 बड़े कारण क्यों BSP में नहीं जमेगी उनकी जोड़ी

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उत्तर प्रदेश की सियासत में आजम खान का नाम आते ही हलचल मच जाती है। सपा के दिग्गज नेता और रामपुर के कद्दावर चेहरा आजम खान की सितंबर 2025 में जेल से रिहाई के बाद पश्चिम यूपी में भूचाल आ गया। वो न तो योगी सरकार पर हमला बोल रहे हैं और न ही अखिलेश यादव से खुश दिख रहे। उनकी चुप्पी और “मेरा ईमान बिकाऊ नहीं” जैसे बयान ने अटकलों को हवा दी कि क्या वो मायावती की BSP के साथ हाथ मिलाएंगे? लेकिन जानकार मानते हैं कि ये गठजोड़ हकीकत में बदलना मुश्किल है। आइए, जानते हैं पांच बड़े कारण।

2019 का कड़वा अनुभव
2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-BSP गठबंधन ने 15 सीटें जीतीं, जिसमें BSP को 10 सीटें मिलीं। लेकिन गठबंधन टूटने की वजह बनी मायावती की नाराजगी। उन्होंने सपा पर इल्जाम लगाया कि उनका कोर वोटर यादव समुदाय BSP को वोट देने में नाकाम रहा। इस गठबंधन की अगुवाई आजम खान ने की थी, और टूटने का सबसे बड़ा झटका उन्हें ही लगा। मायावती का सपा पर भरोसा टूट चुका है, और आजम के साथ दोबारा जोड़ी जमाना उनके लिए जोखिम भरा होगा।

मायावती की अकेले चलने की जिद
मायावती ने 2024 लोकसभा चुनाव से पहले साफ कर दिया था कि BSP न तो इंडिया गठबंधन के साथ जाएगी और न ही NDA के। वो अपनी पार्टी को अकेले मजबूत करना चाहती हैं। आजम खान का BSP में आना उनकी इस रणनीति को कमजोर कर सकता है। हालांकि BSP के इकलौते विधायक उमाशंकर सिंह ने कहा कि आजम का आना पार्टी को ताकत देगा, लेकिन मायावती का रुख साफ है—वो वोट शेयर बचाने के लिए किसी बड़े समझौते से बच रही हैं।

आजम की सपा से वफादारी
जेल से निकलने के बाद आजम ने साफ किया कि वो सपा छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। उन्होंने कहा, “मैं बिकाऊ माल नहीं हूं।” सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी उन्हें पार्टी का अहम चेहरा बताकर स्वागत किया। शिवपाल यादव ने BSP की अटकलों को बकवास करार दिया। सपा के संस्थापक सदस्य रहे आजम के लिए रामपुर जैसे गढ़ को छोड़ना सियासी आत्महत्या जैसा होगा। उनकी वफादारी सपा से अभी भी बरकरार है।

वोटबैंक का टकराव
सपा का आधार मुस्लिम और गैर-यादव OBC है, जबकि BSP का कोर वोटर जाटव दलित है। आजम का BSP में जाना मुस्लिम और दलित वोटों के बीच टकराव पैदा कर सकता है। 2022 के चुनाव में मायावती ने सपा पर मुस्लिम वोट लूटने का इल्जाम लगाया था। आजम जैसे बड़े मुस्लिम चेहरे का आना BSP के दलित वोटबैंक को नाराज कर सकता है, जो मायावती के लिए बड़ा रिस्क है।

कानूनी पचड़े और BSP का जोखिम
आजम खान पर दर्जनों आपराधिक केस हैं। भले ही उन्हें जमानत मिल गई हो, लेकिन वो अभी बरी नहीं हुए। मायावती ऐसी हालत में विवादास्पद चेहरे को जोड़कर खतरा मोल नहीं लेंगी। BSP का हालिया प्रदर्शन भी कमजोर रहा है, और आकाश आनंद जैसे उत्तराधिकारी के रहते आजम का आना पार्टी में नेतृत्व की जंग छेड़ सकता है।

बता दें कि आजम खान की रिहाई ने यूपी की सियासत में हलचल मचा दी, लेकिन BSP के साथ उनका गठजोड़ लगभग नामुमकिन है। क्या वो सपा में ही रहकर अपनी ताकत दिखाएंगे? इसका जवाब 2027 के यूपी चुनाव में मिलेगा।

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