Azam Khan को क्यों याद आ रहे Mulayam? Akhilesh से मुलाकात से पहले दिया ऐसा बयान कि मच गई हलचल
- Ankit Rawat
- 03 Oct 2025 05:15:27 PM
समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान जब से जेल से जमानत पर बाहर आए हैं तब से सुर्खियों में बने हुए हैं। लगभग 23 महीने जेल में बिताने के बाद रामपुर लौटे तो सबसे पहले उन्होंने सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को याद किया। आजम कई इंटरव्यू और बातचीत में बार-बार मुलायम के साथ अपने रिश्तों, दोस्ती और वफादारी को याद कर रहे हैं। उनके दिलो-दिमाग में वही पुराना दौर छाया हुआ है जब उन्हें उत्तर प्रदेश का दूसरा मुख्यमंत्री माना जाता था। आखिर आजम को वो दौर क्यों इतना याद आ रहा है और मुलायम का उनके लिए क्या मतलब है? आइए समझते हैं।
मुलायम और आजम का खास रिश्ता
आजम खान और मुलायम सिंह यादव का रिश्ता सिर्फ नेता और राजनीति का नहीं था। इसमें गहरी दोस्ती और विश्वास था। आजम कहते हैं, “मैं जहां उंगली रखता था मुलायम सिंह वहीं साइन कर देते थे। ये सिर्फ राजनीतिक साथ नहीं बल्कि भरोसे की मिसाल थी।” आजम ने बताया कि जब उनकी पत्नी अस्पताल में थीं तब मुलायम ने अपनी जेब से मदद भेजी, लेकिन उन्होंने मना कर दिया क्योंकि इलाज मुफ्त था। इस किस्से से आजम ये दिखाना चाहते थे कि उनके और मुलायम के बीच कितनी नजदीकी थी।
मुलायम के दौर में आजम की हैसियत
मुलायम सिंह यादव के दौर में आजम की ताकत इतनी थी कि बिना उनकी मौजूदगी के कोई कैबिनेट मीटिंग भी नहीं होती थी। पार्टी के अंदर या बाहर कोई भी बड़ा फैसला आजम के बिना संभव नहीं था। शुगर मिल की बात हो या कोई और राजनीतिक मुद्दा, उनकी राय हमेशा निर्णायक होती थी। इसी वजह से आजम ने हाल ही में कहा कि मुलायम उनके आशिक और माशूक दोनों थे। ये बयान आज के राजनीतिक माहौल में बहुत मायने रखते हैं।
अखिलेश से मुलाकात से पहले आजम के बयान के मायने
सवाल ये कि आखिर आजम खान ऐसे बयाने क्यों दे रहे हैं जब अखिलेश यादव 8 अक्टूबर को उनसे मिलने रामपुर आने वाले हैं? आजम खुद को आज हाशिए पर महसूस कर रहे हैं। जेल में रहते हुए न तो कोई बड़ा सपा नेता उनसे मिला और न ही अखिलेश का कोई खास ध्यान उनकी ओर गया। मुलायम के निधन के बाद आजम को पार्टी में पहले जैसा सम्मान नहीं मिला। ऐसे में उनके ये बयान पार्टी नेतृत्व के लिए एक तरह से संदेश भी माने जा रहे हैं।
क्या आजम राजनीति से थक गए हैं?
आजम खान की रामपुर और प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम समुदाय के बड़े चेहरे के तौर पर पहचान है। उन्होंने कहा कि मुलायम के जाने के बाद शायद उन्हें राजनीति छोड़ देनी चाहिए थी। इसका मतलब साफ है कि अब पार्टी में उनकी जगह कमजोर हो गई है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जेल का अनुभव और अलगाव आजम को अंदर से तोड़ चुका है। एक वक्त के सबसे ताकतवर मंत्री आज खुद मानते हैं कि वो खुदगर्ज हो गए थे।
सपा से जुड़ा आजम का दिल
हाल ही में बसपा में जाने की अफवाहें भी उड़ीं लेकिन आजम ने साफ किया कि वो सपा से कभी बाहर नहीं गए थे। मुलायम के प्यार में वापस आए और पार्टी से उनका नाता अब भी दिल से जुड़ा है। लेकिन सवाल ये है कि अब उनका प्रदेश स्तर पर कितना दखल रहेगा। मुस्लिम राजनीति में नए चेहरे उभर रहे हैं और पार्टी नेतृत्व के साथ आजम की दूरी उनके लिए चुनौती भी है।
रामपुर में आजम का प्रभाव बरकरार
रामपुर में आजम का असर अभी भी है लेकिन प्रदेश की राजनीति में उनकी भूमिका अब पहले जैसी नहीं रही। नया दौर, नए चेहरे और बदलते राजनीतिक समीकरण आजम के लिए कठिनाइयां बढ़ा रहे हैं। फिर भी आजम का सपा में नाम और पहचान कम नहीं हुई है। अब देखना ये होगा कि आगामी दिनो में उनकी राजनीति कैसी होती है और पार्टी में उनका योगदान कितना मजबूत रहता है।
बता दें कि आजम खान के बयान उनकी राजनीति के वर्तमान हालात और पुराने दौर की यादों का आईना हैं। मुलायम के साथ उनकी मजबूत दोस्ती और भरोसे को देखकर पता चलता है कि आजम के लिए वो वक्त कितना खास था। आज उनकी हालत अब पहले जैसी नहीं रही लेकिन उनका सपा से जुड़ाव और असर अभी भी कायम है। अखिलेश से मिलने से पहले उनके ये बयान पार्टी की राजनीति में कई सवाल और संकेत छोड़ते हैं।
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