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Bihar Election: सीटों को लेकर NDA में घमासान, Nitish-Chirag आमने-सामने, कौन बनेगा Bihar का किंगमेकर?

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बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और इसके साथ ही एनडीए गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर खींचतान भी तेज हो गई है। भाजपा, जदयू, लोजपा (रामविलास), हम और रालोसपा के बीच गहमागहमी वाली बातचीत का दौर शुरू हो गया है। हाल ही में हुई अनौपचारिक मुलाकातों के बाद अब बातचीत असली सौदेबाजी की दिशा में बढ़ रही है।

बीजेपी के लिए चुनौती
भाजपा के सामने इस बार सिर्फ चुनाव जीतने का नहीं, बल्कि अपने सहयोगियों को संभालने और उन्हें संतुलित तरीके से साथ रखने की बड़ी चुनौती है। पार्टी चाहती है कि वो 2020 की बढ़त को बनाए रखे और खुद को बिहार में एनडीए का केंद्रीय चेहरा साबित करे। इसके लिए उसे बड़े सहयोगी नीतीश कुमार से लेकर छोटे सहयोगियों चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा तक सभी को एक संतुलन में रखना होगा।

50-50 फॉर्मूले की पेचीदगी
जदयू और भाजपा के बीच अब तक का रिश्ता उतार-चढ़ाव से भरा रहा है, लेकिन इस बार दोनों के बीच 50-50 सीट फॉर्मूला तय माना जा रहा है। इसका मतलब है दोनों दलों को लगभग 120-120 सीटें मिलेंगी। नीतीश कुमार की जातिगत पकड़ और भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता को मिलाकर गठबंधन को मजबूती मिल सकती है। हालांकि छोटे दलों के लिए जगह निकालना इसी संतुलन को मुश्किल बना रहा है।

चिराग पासवान साझेदार या 'किंगमेकर'?
2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की लोजपा ने अकेले लड़कर जदयू को काफी नुकसान पहुंचाया था। अब चिराग भाजपा के कुछ नेताओं के समर्थन और अपनी युवा-दलित छवि से मजबूत होकर 30-35 सीटें मांग रहे हैं। भाजपा उनके साथ रिश्ते मजबूत रखना चाहती है लेकिन जदयू उन्हें लेकर अब भी सतर्क है। यह दुविधा भाजपा के लिए एक 'टफ टेस्ट' बन चुकी है।

छोटे सहयोगी बड़ी उम्मीदें
हम (मांझी) और रालोसपा (कुशवाहा) भी एनडीए के छोटे लेकिन ज़रूरी हिस्से हैं। दोनों दल भाजपा से सम्मानजनक सीटें चाहते हैं, जबकि भाजपा इन दोनों को मिलाकर करीब 8 से 10 सीटें ही देने के मूड में है। इन दलों का वोट बेस सीमित है लेकिन इनकी मौजूदगी जातीय समीकरणों को प्रभावित कर सकती है।

बीजेपी की रणनीति
भाजपा चाहती है कि वो 10-12 सीटों को छोटे दलों को देकर खुद और जदयू के बीच ज्यादा सीटें बनाए रखे ताकि मुख्य मुकाबले में उसका वर्चस्व बना रहे। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि सभी सहयोगियों को जीत की संभावना के आधार पर टिकट दिया जाएगा, न कि सिर्फ मांग के मुताबिक।

एकजुटता दिखाना या पुराना ड्रामा दोहराना?
एनडीए का अगला कदम यह तय करेगा कि क्या सीट बंटवारे की बातचीत सौहार्द में बदलती है या फिर वही पुराना झगड़ा, जिसमें ज्यादा साथी और कम सीटों की उलझन से गठबंधन की तस्वीर धुंधली हो जाती है। आगामी हफ्ते तय करेंगे कि एनडीए सत्ता के खेल को आपसी समझौते में बदल पाता है या फिर भीतरघात और असंतोष की लहर से दो-चार होता है।

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