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सीट बंटवारे को लेकर मांझी का तीखा बयान, NDA में मच गया भूचाल

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बिहार चुनावों की तैयारियों के बीच एनडीए गठबंधन के अंदर राजनीतिक तापमान बढ़ गया है। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने शीर्ष नेतृत्व को खुली चेतावनी दी है कि अगर उनकी पार्टी को कम से कम 15 सीटें नहीं दी गईं, तो वो विधानसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे। उन्होंने कहा कि उनका और उनके समर्थकों का लंबे समय से “उपेक्षा” हो रही है और यह अब स्वीकार्य नहीं है। मांझी ने साफ कहा कि उन्हें अपमानित महसूस हो रहा है। उन्होंने जोड़ दिया कि 15 सीटें मिलने से उन्हें 8‑9 सीटें जीतने की ताकत मिलेगी। साथ ही उन्होंने यह विकल्प भी रखा कि यदि यह मांग पूरी नहीं हुई तो वे 60‑70 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ कर समर्थन दिखाएंगे। उन्होंने यह भी साफ किया कि उनका चिराग पासवान से कोई विरोध नहीं है, पर उनका निवेदन है कि उन्हें अपमान से न गुजरना पड़े।

“दे दो हमें 15 ग्राम” 
मांझी ने ट्विटर (अब X) पर एक काव्यात्मक पोस्ट शेयर किया, जिसमें उन्होंने कहा:

“हो न्याय अगर तो आधा दो,
यदि उसमें भी कोई बाधा हो,
तो दे दो केवल 15 ग्राम,
रखो अपनी धरती तमाम,
हम वही ख़ुशी से खाएँगे,
परिजन पे आसी ना उठाएंगे।”

इस पोस्ट से उन्होंने संकेत दिया कि दरअसल वो सिर्फ एक छोटा हिस्सा मांग रहे हैं ।  एक न्यूनतम सीटों की हिस्सेदारी ताकि उनकी पार्टी को अस्तित्व मिले। बाद में उन्होंने मीडिया को स्पष्ट किया कि उनकी मांग विवाद नहीं, मान्यता और प्रतिनिधित्व की है। उन्होंने कहा कि यदि एक भी सीट नहीं मिले तब भी वे NDA से बाहर नहीं जाएंगे।

सीट बंटवारे की जटिल राजनीति
मांझी की मांग ऐसे समय आई है, जब एनडीए सहयोगी दल अपने-अपने दावे लेकर सामने आ रहे हैं। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) भी उच्च सीटों की मांग करने को तैयार है। कई खबरों में उनका नाम 25‑40 सीटों की मांग के दायरे में चल रहा है। इन मांगों के बीच एनडीए को एक संतुलन बनाने की चुनौती है कि कैसे हर दल को सम्मानजनक हिस्सेदारी दी जाए और गठबंधन की एकता बनी रहे। जनता और विश्लेषक ध्यान दे रहे हैं कि भाजपा और अन्य बड़े दल इस दबाव का हल कैसे निकालेंगे।

मांझी की राजनीतिक मजबूरियां
मांझी का कहना है कि उनकी पार्टी का संगठन मजबूत है, लेकिन विधानसभा में आवाज़ नहीं है। उन्होंने पहले भी सार्वजनिक रूप से कहा था कि अगर उनका दल मान्यता प्राप्त होना है तो उन्हें कम‑से‑कम 15 सीटें मिलनी चाहिए। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में उनसे 20‑25 सीटों की मांग करने का खुलासा भी हुआ है। उनकी पार्टी के पास वर्तमान में मात्र चार विधायक हैं। इस स्थिति में वो विधानसभा में अपनी मौजूदगी न बढ़ा पाएं तो उनके वादे और राजनीतिक योग्यता दोनों ही सवालों के घेरे में आ जाएंगे।

सीट बंटवारे पर निर्णायक दौर
एनडीए गठबंधन अभी सीटों के बंटवारे पर अंतिम निर्णय तक पहुंचने में जुटा है। यह निर्णय इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होगा कि किस दल को कितनी सीटें मिलेंगी, किसे मुख्यमंत्री उम्मीदवार का प्रस्ताव मिलेगा और गठबंधन की रणनीति कैसी होगी। कुछ रिपोर्टों के मुताबिक एनडीए 9 अक्टूबर तक सीट-बंटवारे की घोषणा कर सकती है। 
बता दें कि अगर मांझी की मांग पूरी होती है यानी उन्हें 15 सीटें मिलती हैं तो HAM (सेक्युलर) को विधानसभा में निर्णायक भूमिका मिल सकती है। अगर नहीं होती तो मांझी द्वारा धमकी दी गई रणनीति से गठबंधन में दरार की संभावना है।

राजनीतिक गलियारों में कहा जा रहा है कि मांझी की यह चाल केवल सीट मांग तक सीमित नहीं है। वो प्रतिनिधित्व और मान्यता की लड़ाई लड़ रहे हैं। अब सबकी निगाहें भाजपा, जेडीयू और अन्य गठबंधन दलों की प्रतिक्रिया पर टिकी हैं कि क्या वो इस तीव्र मांग को सम्मान देंगे या गठबंधन को संभालने के लिए सख्त रुख अपनाएंगे? इस घटना ने यह सवाल फिर से उठा दिया है कि बिहार में गठबंधन राजनीति कितनी जटिल है । न केवल सीटों की दावेदारी बल्कि दलों की गरिमा और राजनीतिक अस्तित्व की जंग भी इसमें झलकती है।

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