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Bihar का पढ़ा-लिखा बाहुबली नेता, जिसने सालों तक जाने नहीं दी विधायकी, आखिर कौन है वो शख्स

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अपराध और राजनीति की मिलीजुली दुनिया ने बिहार में कई जाने माने राजनेता दिए हैं । जिन्होंने सालों तक अपना वर्चस्व कायम कर के रखा है। इनमें सबसे ज्यादा जिस नाम की चर्चा होती है वो नाम है सुनील पांडे का। वो बाहुबली नेता जिसके पास डॉक्टरेट की डिग्री थी। भोजपुर ज़िले से पूर्व विधायक और चार बार चुनाव जीत चुके थे। लेकिन पांडे बिहार की राजनीति में हमेशा से  विवादास्पद छवि रही है। वो सालों तक सुर्खियों में रहे लेकिन अक्सर गलत वजहों से।

अपराध की दुनिया से जुड़ा रहा नाम
बिहार के सियासी माहौल में राजनीति और बाहुबल का एक साथ होना कोई नई बात नहीं है। पीएचडी की डिग्री होने के बावजूद पांडे का नाम लगातार आपराधिक दुनिया से जुड़ा रहा। जिससे उनके पूरे राजनीतिक जीवन में लगातार विवाद होते रहे।

बेटा आगे बढ़ाएगा विरासत को 
सुनील पांडे के राजनीति से संन्यास लेने के बाद उनके बेटे विशाल प्रशांत BJP के टिकट पर तरारी से चुनाव लड़ेंगे। लेकिन  आखिर सवाल ये कि सुनील पांडे को ये बाहुबली की छवि कैसे मिली। उनका जन्म रोहतास जिले में नरेंद्र पांडे के रूप में हुआ था। उनके पिता कामेश्वर पांडे एक ठेकेदार थे और उनका काफी प्रभाव था। पांडे ने रोहतास में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और फिर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बेंगलुरु चले गए। लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और घर लौट आए। इसके बाद उन्होंने वहीं से शुरू किया जहां से उन्होंने छोड़ा था। अपराध की दुनिया में कदम रखने के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने आरा के एक स्थानीय विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी की मानद उपाधि प्राप्त की। गौर करने की बात ये है कि इस दबंग ने कानून की भी पढ़ाई की थी।

तीन बार विधायक रहे
अपने रूममेट शीलू मियां की हत्या के आरोप में सुनील पांडे सुर्खियों में आए। उन्होंने इसका इस्तेमाल अपनी राजनीति का विस्तार करने के लिए किया। वो भोजपुर ज़िले से विधायक बने लेकिन इनके चर्चे हर जिले तक पहुंच गए थे और धीरे-धीरे उनको पूरा बिहार जानने लगा।

साल 2000 तक वो पुलिस से छिपते रहे। इसके बाद उनकी जिंदगी में एक अहम मोड़ आया। समता पार्टी ने उन्हें पीरो विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया और उन्हें सफलता मिली। 2005 में उन्होंने जदयू के टिकट पर पीरो से फिर से जीत हासिल की। ​​लेकिन इस सीट पर दोबारा चुनाव होने पर वो चुनाव हार गए।
बता दें कि पीरो सीट 2008 में अस्तित्व में नहीं रही। परिसीमन के बाद इसकी जगह तरारी सीट ने ले ली। उन्होंने 2010 में इस सीट से अपनी तीसरी जीत हासिल की। ​​2015 के चुनाव में उन्होंने अपनी पत्नी गीता पांडे को लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के टिकट पर तरारी से चुनाव लड़ाया लेकिन वो हार गईं। पांडे ने राजनीति में अपनी सक्रियता के दौरान जदयू, समता पार्टी और लोजपा के बीच सात बार दल बदले।

ज्यादातर जीवन जेल में बिताया
सुनील पांडे ने अपना ज़्यादातर जीवन जेल में या छिपकर बिताया। वह पिछले कुछ सालों में हत्या, जबरन वसूली और अपहरण जैसे कई आपराधिक मामलों में शामिल रहे हैं। उन पर उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुख्तार अंसारी की हत्या की सुपारी देने का भी आरोप है।

वो ज़मींदारों के एक सशस्त्र आंदोलन, रणवीर सेना से भी जुड़े हुए थे। पांडे को रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया का करीबी बताया जाता था लेकिन ये रिश्ता ज़्यादा दिन नहीं चला। 1997 में रणवीर सेना ने पांडे के एक रिश्तेदार की हत्या को लेकर उनके बीच जल्द ही टकराव शुरू हो गया। 2012 में मुखिया की उसके घर के बाहर हत्या कर दी गई।
पांडे जल्द ही इस हत्याकांड को लेकर सुर्खियों में आ गए, लेकिन बाद में सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया। सुरागों के अभाव में वो पिछले कुछ सालों में कई आपराधिक मामलों में बरी होते रहे। ऐसा ही एक हाई-प्रोफाइल मामला आरा सिविल कोर्ट बम विस्फोट का था। एक बार उन्होंने पटना के एक फाइफ स्टार होटल में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्रकार को सार्वजनिक रूप से धमकी दी थी जिसने पूरे देश का ध्यान खींचा था।

राजनीति से ले चुके हैं सन्यास
पांडे अब राजनीति से संन्यास ले चुके हैं। उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे विशाल प्रशांत को सौंप दी है। 2024 के विधानसभा उपचुनाव में प्रशांत ने BJP के टिकट पर तरारी से जीत हासिल की जो कभी उनके पिता की सीट थी। 2025 के विधानसभा चुनाव में भी प्रशांत को एक मजबूत दावेदार माना जा रहा है। BJP नेता होने के नाते वह अब तरारी से फिर से चुनाव लड़ रहे हैं और अपनी दूसरी जीत की उम्मीद कर रहे हैं।

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