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BJP में शुरू हो रही जाति को लेकर अंतर्कलह, ये जातियां कहीं कर न दें बगावत

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अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण में उप-कोटा निर्धारित करने का मुद्दा बीजेपी के लिए कांटा बनता जा रहा है। Bjp के सहयोगी दल भी इस पर एकमत नहीं हैं। अपना दल (एस) संख्या बल के आधार पर आरक्षण निर्धारित करने की मांग कर रहा है। वहीं सुभाषपा उप-कोटा लागू करने पर ज़ोर दे रही है। दूसरी ओर निषाद पार्टी ओबीसी में उप-कोटा के खिलाफ है। उनकी मांग है कि पहले निषाद, मल्लाह और केवट समुदायों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाए उसके बाद ही उप-कोटा लागू किया जाए। इस बीच  बीजेपी और रालोद ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। जानकारों का मानना है कि अगर उप-कोटा लागू हुआ तो यादव, कुर्मी, मौर्य, सैनी, शाक्य और कुशवाहा समुदाय को सबसे ज़्यादा नुकसान होगा इसलिए बीजेपी और सपा इस मुद्दे पर चुप हैं।

जाति का मुद्दा बीजेपी के लिए अहम क्यों ?
उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जातियों में सबसे बड़ी आबादी जाटव समुदाय की है। ओबीसी में सबसे ज़्यादा संख्या यादव समुदाय की है। उसके बाद कुर्मी, लोध, जाट, शाक्य, सैनी और कुशवाह समुदाय आते हैं। सरकारी नौकरियों में आरक्षित वर्ग को मिलने वाले लाभों का रिकॉर्ड भी दर्शाता है कि अनुसूचित जाति वर्ग में जाटव समुदाय सबसे आगे रहा। जबकि पिछड़े वर्ग में यादव, लोधी, शाक्य, सैनी, कुशवाह और मौर्य समुदाय के युवाओं को अन्य पिछड़ी जातियों की तुलना में ज़्यादा लाभ मिला।

माना जाता है कि शिक्षित और जागरूक होने की वजह से आरक्षण का सबसे ज़्यादा फ़ायदा इन्हीं जातियों को होता है। यादव समुदाय सपा का वोट बैंक है। लेकिन समाजवादी पार्टी हमेशा से 'जितनी संख्या भारी, उतनी हिस्सेदारी' की वकालत करती रही है। ऐसा इसलिए ताकि आरक्षण में यादव समुदाय के हित सुरक्षित रहें। दूसरी ओर कुर्मी, लोध, मौर्य, शाक्य, सैनी समुदाय बीजेपी का वोट बैंक माने जाते हैं। अगर कोटे के अंदर कोटा लागू हुआ तो सबसे ज़्यादा नुकसान इन्हीं जातियों को होगा और ये सीधे तौर पर बीजेपी के ख़िलाफ़ हो जाएंगे। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करना राज्य की योगी सरकार के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बढ़ी उम्मीद 
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2024 को एक ऐतिहासिक फैसले में 'कोटा के भीतर कोटा' यानी आरक्षण के भीतर आरक्षण की व्यवस्था को मंजूरी दी। कोर्ट ने कहा कि सभी अनुसूचित जातियां और जनजातियां एक समान वर्ग नहीं हैं। इसके अंतर्गत, एक जाति दूसरी जाति से अधिक पिछड़ी हो सकती है। इसलिए उनके उत्थान के लिए राज्य सरकार उन्हें उप-वर्गीकृत करके अलग से आरक्षण दे सकती है। इसके साथ ही कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के आरक्षण से 'क्रीमी लेयर' की पहचान करने और उसे बाहर करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।

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