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Uttarakhand की पंचायतों में लटके ताले! 33 हजार सीटें खाली, गांवों का काम ठप!

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उत्तराखंड में जुलाई में पंचायत चुनाव तो हो गए थे, लेकिन आज भी राज्य की हजारों पंचायतें काम शुरू नहीं कर पाई हैं। कारण है 33 हजार पंचायत सदस्य पद अब भी खाली हैं। स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि कई जिलों में पंचायतों का कोई औपचारिक गठन ही नहीं हो पाया। गांवों के विकास कार्य, योजनाओं की मंजूरी और फंड का इस्तेमाल सब रुक गया है।

5 हजार पंचायतों में प्रधान नहीं ले पाए शपथ
राज्य में कुल 7,499 ग्राम पंचायतें हैं। इनमें से लगभग 5,000 पंचायतों में प्रधानों की शपथ तक नहीं हो पाई है। नियम के मुताबिक प्रधान को शपथ तभी दी जाती है जब पंचायत के सदस्यों का दो-तिहाई हिस्सा चुना जा चुका हो। लेकिन मुश्किल ये है कि कई पंचायतों में तो सदस्य चुने ही नहीं गए। ऐसे में प्रधानों को शपथ दिलाना संभव नहीं हो पा रहा।

33 हजार सीटों पर कोई नामांकन नहीं
सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि राज्य में 33,000 पंचायत सदस्य पदों पर किसी ने नामांकन ही नहीं किया। कई जगह लोगों की रुचि नहीं दिखी, तो कहीं उम्मीदवारों की कमी रही। इस वजह से ग्राम पंचायतें पूरी तरह से खाली पड़ी हैं और उनका कामकाज ठप हो गया है।

पंचायतों का गठन रुकने से बड़ा संकट
चुनाव भले ही हो चुके हों लेकिन बिना सदस्यों के पंचायतें गठित नहीं हो सकतीं। ग्राम पंचायत का गठन हुए बिना गांवों से जुड़े फैसले नहीं लिए जा सकते । न तो कोई विकास योजना मंजूर हो रही है, न ही बजट जारी हो पा रहा है। ये स्थिति अब संवैधानिक संकट का रूप ले चुकी है। कानून के मुताबिक पंचायत के गठन के बिना गांव का प्रशासनिक काम आगे नहीं बढ़ सकता।

नवंबर में उपचुनाव की तैयारी
इस संकट से निपटने के लिए पंचायती राज विभाग ने अब नवंबर में उपचुनाव कराने की तैयारी शुरू कर दी है। सरकार का कहना है कि इस बार हर हाल में खाली सीटों को भरना जरूरी है। क्योंकि अगर ये पद यूं ही खाली रहे तो पंचायत व्यवस्था का पूरा ढांचा हिल जाएगा। उपचुनाव के जरिए कोशिश की जाएगी कि दिसंबर से पहले सभी पंचायतें सक्रिय हो जाएं।

20 पंचायतों में प्रधान का चुनाव भी नहीं हुआ
इतना ही नहीं लगभग 20 ग्राम पंचायतों में प्रधान पद पर भी कोई उम्मीदवार सामने नहीं आया था। यानी यहां न तो प्रधान चुना गया और न ही कोई सदस्य। जुलाई में हुए चुनाव में इन पंचायतों ने नामांकन प्रक्रिया में कोई भाग नहीं लिया। अब नजरें इस बात पर हैं कि नवंबर में होने वाले उपचुनाव में आखिर कितने लोग आगे आते हैं।

गांवों के विकास पर असर
पंचायतों के ठप पड़ने से गांवों में रोजमर्रा के कामकाज पर सीधा असर पड़ा है। मनरेगा, स्वच्छ भारत मिशन, आवास योजना जैसे कई कार्यक्रम अटके पड़े हैं। गांव के लोगों का कहना है कि बिना पंचायत के छोटे-छोटे कामों के लिए भी अब जिला मुख्यालयों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।

अब नजर उपचुनाव पर
अब सारी उम्मीदें नवंबर में होने वाले उपचुनाव से हैं। अगर ये चुनाव समय पर हो जाते हैं तो दिसंबर तक सभी पंचायतें फिर से काम करने लगेंगी। फिलहाल राज्य सरकार पर दबाव है कि वो इस संवैधानिक संकट से जल्द बाहर निकले। लोगों की यही मांग है कि गांवों का विकास पंचायत से ही शुरू होता है इसलिए उसे चालू रखना जरूरी है।

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