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क्रिकेट के मैदान पर इंडियन जेन-जी का धमाका, नेपाल-बांग्लादेश के जेन-जी से हैं बेहतर

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एशिया कप 2025 के फाइनल मैच ने मैदान पर एक बार फिर भारत-पाक की जंग ने दुनिया को बांध लिया। 28 सितंबर को दुबई में खेले गए इस मुकाबले में भारतीय टीम ने पाकिस्तान को 5 विकेट से हरा दिया। पाक ने 19.1 ओवर में 146 रन बनाए तो भारत ने 19.4 ओवर में लक्ष्य हासिल कर लिया। तिलक वर्मा की शानदार अर्धशतकीय पारी ने मैच को थ्रिलर बना दिया। ये जीत भारत के लिए नौवीं एशिया कप ट्रॉफी लाई। लेकिन सिर्फ क्रिकेट की बात नहीं है। ये जीत नई पीढ़ी यानी जेन-जी की ताकत का सबूत बनी है। 
एक ओर जहां नेपाल और बांग्लादेश में जेन-जी ने गुस्से में हिंसा का रास्ता चुना वहां भारतीय युवा क्रिकेट जैसे खेल में अनुशासन से चमके। 

पाक को तीनों मुकाबलों में दी पटखनी
टूर्नामेंट में भारत ने पाक को ग्रुप स्टेज में 14 सितंबर सुपर फोर 21 सितंबर और फाइनल में धूल चटा दी। हर मैच में भारतीय खिलाड़ियों की जिद दिखती रही लेकिन कभी गुस्सा नहीं फूटा। तिलक वर्मा महज 22 साल के हैं। उनकी कूल हेडेड बैटिंग ने फाइनल मैच जिताया। शिवम दुबे ने भी अहम पार्टनरशिप निभाई। कप्तान सूर्यकुमार यादव ने टीम को संभाला। दूसरी तरफ पाक के खिलाड़ी मैदान पर AK-47 या फाइटर जेट जैसे इशारे करके आक्रामकता दिखाने की कोशिश करते रहे। पाक कप्तान सलमान आगा ने तो भारत पर क्रिकेट का अपमान करने का आरोप भी लगाया। लेकिन भारतीय टीम ने संयम बनाए रखा। ये जीत सिर्फ स्कोरबोर्ड की नहीं ये अनुशासन की जीत थी।
जेन-जी की उम्र 13 से 28 साल के बीच मानी जाती है। भारतीय टीम का औसत उम्र भी यही है। ऐसे में ये जीत इंडियन जेन-जी का प्रतीक बनी। 

नेपाल-बांग्लादेश में जेन-जी का गुस्सा
दूसरी तरफ पड़ोसी देशों में जेन-जी की ऊर्जा गलत दिशा में बह गई। नेपाल में सितंबर 2025 में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ शुरू हुए विरोध प्रदर्शन भड़क उठे। जेन-जी छात्र भ्रष्टाचार के नाम पर सड़कों पर उतरे लेकिन जल्दी ही हिंसा फैल गई। संसद भवन जलाया गया और नेताओं के घर लूटे गए। पुलिस से भिड़ंत में 70 से ज्यादा लोग मारे गए, सैकड़ों घायल हुए। यहां तक कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। अंतरिम सरकार बनी लेकिन देश अराजकता में डूबा। बांग्लादेश में 2024 की जुलाई क्रांति भी जेन-जी ने ही चलाया। कोटा सिस्टम के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध शुरू हुआ लेकिन ये हिंसा में बदल गया। प्रधानमंत्री शेख हसीना देश छोड़ कर भाग गईं, लेकिन आंदोलन में सरकारी इमारतें जलाई गईं और खरबों की संपत्ति नष्ट हुई। दोनों देशों में युवाओं ने सत्ता तो हिलाई लेकिन अर्थव्यवस्था और शांति को झटका दिया। ये आंदोलन दिशाहीन गुस्से का नमूना बने। 

हिंसा बनाम अनुशासन
जेन-जी के दो रास्ते और इनमें फर्क साफ दिखता है। क्रिकेट में भारतीय जेन-जी ने जिद को जुनून में बदला लेकिन नियमों का पालन किया। पाक के खिलाफ तीन हार झेलने पर भी वो संतुलित रहे। तिलक जैसे युवा हीरो बने। वहीं नेपाल बांग्लादेश में जेन-जी का आक्रोश तोड़फोड़ में उभरा। वहां ऊर्जा विनाश की तरफ गई और यहां निर्माण की ओर। विशेषज्ञ कहते हैं हिंसक बदलाव कभी स्थायी नहीं होता। नेपाल में अब अराजकता बढ़ रही है। बांग्लादेश में सुधार मुश्किल हो रहे हैं। भारत में जेन-जी का स्पोर्ट्स क्षेत्र चमक रहा है। अगर ये ऊर्जा सही जगह लगे तो देश विश्व पटल पर नई ऊंचाई छुएगा। एशिया कप की जीत यही साबित करती है।

व्यवस्था बदलाव की उम्मीद
कई लोग नेपाल-बांग्लादेश के उदाहरण देकर भारत में आंदोलन की बात करते हैं। कहते हैं जेन-जी सत्ता हिला सकते हैं। लेकिन हिंसा से मिली सत्ता जल्दी गिर जाती है। भारत में जेन-जी के पास मजबूत मंच हैं। वोटिंग स्टार्टअप्स और सोशल मीडिया का भी सहारा है। इन्हें इस्तेमाल कर बदलाव लाना संभव है। 
इसी कड़ी में क्रिकेट टीम ने दिखाया कि संयम से लक्ष्य हासिल होता है। फाइनल में ट्रॉफी विवाद भी हुआ। एसीसी चीफ मोहसिन नकवी ने ट्रॉफी ले ली तो भारत ने इनकार कर दिया। लेकिन ये सब अनुशासन से ही संभला। नई पीढ़ी को यही सीखना चाहिए। 

सूर्यकुमार ब्रिगेड से सीख
सूर्यकुमार की अगुवाई में टीम ने साबित किया कि जुनून बिना अनुशासन के बेकार है। नेपाल बांग्लादेश के जेन-जी ने जो गुस्सा दिखाया उससे देश जलता रहा । भारत के युवा बेहतर इसलिए भी हैं क्योंकि उनके पास विकल्प हैं... मौके हैं और मंच हैं। एशिया कप की ये जीत जीवन का पाठ है। जेन-जी अगर ऊर्जा निर्माण में लगाए तो भारत सुपरपावर बनेगा क्योंकि विनाश में तो सिर्फ मलबा बचेगा। लेकिन सवाल वही है नई पीढ़ी किस रास्ते को चुनेगी। निर्माण का या विनाश का। क्रिकेट के मैदान ने इसका जवाब दे दिया है और अब समाज की बारी है।

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