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Dhanteras 2025: क्यों मनाई जाती है धनतेरस, क्या है महत्व जानिए सब कुछ एक क्लिक में

इस त्योहार के अवसर पर लोग अपने जीवन में समृद्धि लाने के उद्देश्य से सोने-चांदी के आभूषण, गाड़ी और बर्तन खरीदने की सदियों पुरानी परंपरा का पालन करते हैं। ये दिन धन की देवी लक्ष्मी और ज्ञान के देवता भगवान गणेश का आशीर्वाद हासिल करने के लिए जाना जाता है।

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इस ज्योतिर्लिंग में आज भी सोने के लिए आते हैं भगवान शिव, वजह जान जाओगे तो चौंक जाओगे !

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कई मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि भगवान शिव तीनों लोक का भ्रमण करके हर दिन इसी मंदिर में रात को सोने के लिए आते हैं. भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग को लेकर यह माना जाता है कि इस तीर्थ पर जल चढ़ाए बगैर व्यक्ति की सारी तीर्थ यात्राएं अधूरी मानी जाती हैं.

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Dhanteras 2025: सोना-चांदी से लेकर गोमती चक्र तक, जानें क्या लाएं इस धनतेरस पर!

18 अक्टूबर को धनतेरस का त्योहार मनाया जाएगा। इस शुभ दिन पर लोग पारंपरिक रूप से धन और समृद्धि के प्रतीक देवी लक्ष्मी और भगवान कुबेर का अपने घरों में स्वागत करने के लिए सोना, चांदी, बर्तन और इलेक्ट्रॉनिक सामान खरीदते हैं।

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शिल्पकारी का अप्रतिम उदाहरण है ये जैन मंदिर, सुंदर इतना कि पांव रखने से पहले सोंचना पड़े!

रणकपुर जैन मंदिर पूरी दुनिया में अपनी विशाल आकृति, वास्तुकला और सुंदरता के लिए जाना जाता है. यह मंदिर जैन धर्म के पांच प्रमुख मंदिरों में से एक है, जोकि जैन तीर्थंकर आदिनाथ जी को समर्पित है. साथ ही चारों ओर से जंगलों से घिरा हुआ यह मंदिर अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए अपनी अलग पहचान रखता है.

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Dhanteras 2025: क्यों की जाती है खरीदारी, सोना, चांदी और बर्तन खरीदना क्यों है खास? जानिए इसके पीछे की बड़ी वजह

धनतेरस सोना और चांदी जैसी कीमती धातुओं की खरीदारी के लिए एक शुभ दिन है। इस दिन लोग बहुमूल्य वस्तुएं खरीदते हैं जिनसे मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। ये भारतीय संस्कृति में एक लंबे समय से चली आ रही प्रथा है। इस खरीदारी को घर में समृद्धि और सुख के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।

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मुगल बादशाह भी नहीं तुड़वा पाया मूर्ति, बालक कन्हैया लाला की अनोखी कृपा, कहानी उड़ा देगा होश!

राजस्थान की धरती पर आपको सभी धर्मों का समागम मिल जाएगा. हर धर्म से जुड़े यहां बहुत ही खूबसूरत और धार्मिक स्थल हैं. अगर आप कृष्ण भक्त हैं और बांके बिहारी के मंदिर वृंदावन नहीं जा पा रहे हैं तो यहां कन्हैया ने अपनी ही नगरी बसा रखी है जहां अगर आप एक बार जाएंगे तो छोटे कन्हैया को देख अपना दिल श्रीनाथ जी को दे बैठेंगे.

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अजमेर का 400 साल पुराना डांगेश्वर महादेव मंदिर, अनूठी है इसकी महिमा, इसके किस्से आपको चौंका देंगे!

अजमेर से 52 किलोमीटर दूर मसूदा के निकट 400 साल पुराना डांगेश्वर महादेव मंदिर है. हर साल शिवरात्रि मेले और सावन में यहां आसपास के 252 गांवों के शिवभक्त इकट्ठा होते हैं. इस ऐेतिहासिक मंदिर में मसूदा दरबार और उनके वंशज शिव पूजा करते आ रहे हैं.

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यहां एक ही छत के नीचे है शक्ति पीठ और ज्योतिर्लिंग, दुनिया में है पहला और एकमात्र मंदिर, जानें कहां

यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है । यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग एक ही छत के नीचे विराजमान हैं। हिंदू ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव अमावस्या को अर्जुन के रूप में और देवी पार्वती पूर्णिमा को मल्लिका के रूप में यहां प्रकट हुए थे।

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भगवान गणेश का ये मंदिर है बड़ा ही निराला, अगर जा रहे हैं राजस्थान तो यहां जरूर जाइएगा।

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में रणथंभौर किले के अंदर त्रिनेत्र गणेश स्थित है।त्रिनेत्र गणेश मंदिर राजस्थान का सबसे पुराने मंदिरों में से एक के रूप में प्रसिद्ध है।यह पूरी दुनिया में एकमात्र मंदिर है जिसमें उनका पूरा परिवार एक साथ एक ही स्थान पर रहता है । साथ ही गणेश जी की मूर्ति में तीन आंखें हैं।

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हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है Rajasthan का ये शहर, एक ओर होती है अजान तो दूसरी ओर बजती हैं घंटियां

अजमेर शरीफ दरगाह मध्य अजमेर रेलवे स्टेशन से 2 किमी दूर तारागढ़ पहाड़ी के नीचे स्थित है। इसमें दो आंगनों के चारों ओर स्थित कई सफेद संगमरमर की संरचनाएं शामिल हैं, साथ ही हैदराबाद के निज़ाम द्वारा उपहार में दिया गया एक विशाल दरवाजा और मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा निर्मित अकबरी मस्जिद भी शामिल है।

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भगवान विष्णु का पावन धाम जगदीश मंदिर, जानिए मंदिर से सपनों का क्या है कनेक्शन

राजस्थान के इस विश्वविख्यात विष्णु मंदिर के बारे में मान्यता है कि कभी भगवान श्री विष्णु ने यहां के राजा जगत सिंह प्रथम को सपने में दर्शन देकर एक भव्य मंदिर बनाने का आदेश दिया था। मान्यता है कि स्वप्न में भगवान श्री विष्णु ने राजा से कहा कि अब वे यहीं पर आकर निवास करेंगे।

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माता सीता के तप के तेज से उत्पन्न हुई थी ये माता, इन्हीं के आशीर्वाद से हुआ लव-कुश का जन्म

माता सीता ने जब महलों को छोड़ा तो महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में रहीं। यहां उन्होंने महान तप किया और यहीं लवकुश का जन्म हुआ। कानपुर के बिरहाना रोड में मां तपेश्वरीदेवी का मंदिर है जो माता सीता के तप से उत्पन्न हुई हैं। यहीं पर लव कुश का मुंडन संस्कार भी हुआ। यहां पर बड़ी तादात में भक्त पहुंचते हैं ।

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मां दुर्गा का ऐसा मंदिर जहां होता है मांगलिक दोष का निवारण, फेमस सेलिब्रिटी भी टेक चुके हैं माथा

मिर्जापुर जिले में विंध्यवासिनी धाम स्थित है. आदि काल से शक्ति की आराधना और उपासना का ये प्रमुख केंद्र रहा है. यूपी का विंध्य क्षेत्र हमेशा से ऋषि-मनीषियों, तपस्वियों और भक्तों के लिए आस्था का केंद्र रहा है. इनमें मां विंध्यवासिनी मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं हैं. मां विंध्यवासिनी धाम में हजारों की संख्या में भक्त सामान्य दिनों में दर्शन करते हैं.

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कैसे बने एक गुमनाम संत से Premanand Maharaj, जिनकी आज दुनिया है दिवानी, जानिए उनके खास सफर के बारे में

प्रेमानंद महाराज का नाम आज कौन नहीं जानता। देश- विदेश में उनके हजारों की तादात में अनुयायी हैं। फिल्म हो, टीवी हो या फिर स्पोर्ट्स जगत तमाम हस्तियां प्रेमानंद महाराज से एकांतिक वार्तालाप करने के लिए जरूर पहुंचती हैं।

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Deepawali की रात है रहस्यों से भरी, जानिए क्या होता है लक्ष्मी पूजा के बाद

कार्तिक मास की अमावस्या यानी दीपावली जिसे तंत्र साधना करने वालों के लिए बेहद शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इस रात में ब्रह्मांडीय ऊर्जा अपने चरम पर होती है और तंत्र साधक को इस रात ऐसा आत्मिक बल मिलता है जो कभी न मिला हो।

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Deepawali के दिन आखिर क्यों होती है मां काली की खास पूजा, वजह जान हो जाएंगे हैरान

दीपावली के इस पर्व पर जहां एक ओर लक्ष्मी पूजा का महत्व है, लेकिन कई जगहों पर आज के दिन मां काली की विशेष पूजा की जाती है।खास कर के बंगाल, ओडिशा और असम में दीपावली के दिन मां काली की पूजा होती है। सदियों से इस परंपरा को निभाया जा रहा है।

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इस बार अहोई अष्टमी के दिन चमकेगी इन राशि वालों की किस्मत. अभी जानें।

इस बार अहोई अष्टमी का पर्व विशेष रूप से वृषभ, कर्क, सिंह, तुला और मकर राशि वालों के लिए शुभ रहेगा। ये राशियाँ संतान सुख, पारिवारिक समृद्धि, और आर्थिक लाभ के नए अवसर प्राप्त कर सकती हैं।

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दीपावली की रात मां लक्ष्मी के साथ क्यों होती है मां काली की पूजा, जानिए एक क्लिक में

दीपावली की रात मां लक्ष्मी के साथ मां काली की पूजा का महत्व धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह पूजा अंधकार से प्रकाश की ओर, बुराई से अच्छाई की ओर और सुरक्षा व समृद्धि की प्राप्ति के लिए होती है।

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Ahoi Ashtami पर खुलेंगे किस्मत के दरवाजे! संतान सुख और समृद्धि के लिए करें ये व्रत

अहोई अष्टमी 13 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी। मांएं इस दिन संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। अहोई माता की पूजा, कथा और अर्घ्य अर्पण से परिवार में खुशहाली और संतान सुख की प्राप्ति होती है।

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Karwa Chauth 2025: सुहागिनों की छलनी में सजे चांद के राज, जानिए व्रत का रहस्य और कब निकलेगा चांद

करवाचौथ 2025 का व्रत पूरे देश में उत्साह से मनाया जा रहा है। महिलाएं सजधजकर अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र की कामना कर रही हैं। देशभर में चांद निकलने का समय तय हो चुका है, पूजा और व्रत की विधियां जारी हैं।

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